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बैंगलोर

सात बड़ी चुनौतियों को पार कर चांद की धरती पर उतरेगा विक्रम

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 मिशन के चांद की धरती पर लैंडिंग से जुड़ी चुनौतियों का उल्लेख करते हुए सात महत्वपूर्ण पड़ावों का जिक्र किया है। यह मिशन सम्भवत: 9 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा और 6 सितंबर को यह चांद के दक्षिणी धु्रव पर उतरेगा।

बैंगलोरJun 04, 2019 / 11:58 pm

शंकर शर्मा

सात बड़ी चुनौतियों को पार कर चांद की धरती पर उतरेगा विक्रम

सात बड़ी चुनौतियों को पार कर चांद की धरती पर उतरेगा विक्रम

राजीव मिश्रा

बेंगलूरु. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 मिशन के चांद की धरती पर लैंडिंग से जुड़ी चुनौतियों का उल्लेख करते हुए सात महत्वपूर्ण पड़ावों का जिक्र किया है। यह मिशन सम्भवत: 9 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा और 6 सितंबर को यह चांद के दक्षिणी धु्रव पर उतरेगा।


चंद्र पथ का सटीक आकलन
इसरो ने कहा है कि मिशन को लॉन्च करने के बाद सबसे पहली चुनौती चंद्र पथ का सटीक अनुमान लगाना होगा। चन्द्रयान-2 पृथ्वी से 3.844 लाख किमी की दूरी तय कर चांद की कक्षा में पहुंचेगा। इस पथ पर धरती, चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों के अलग-अलग गुरुत्वाकर्षण बल अंतरिक्षयान को प्रभावित करेंगे और उसे अपनी ओर खींचेंगे। इसके अलावा सौर विकिरण और उसका दबाव भी काम करेगा। इसके बावजूद पथ में थोड़ा भी विचलन मिशन पर विपरीत असर डाल सकता है। सटीक पथ का अनुसरण करते हुए चांद तक पहुंचना पहली चुनौती होगी।


गहन अंतरिक्ष में संचार बनाए रखना कठिन
गहन अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद यान के साथ निरंतर संचार कायम करना दूसरी बड़ी चुनौती होगी। धरती से दूरी बहुत अधिक होगी जबकि ऑन बोर्ड (यान में) संचार के लिए उपयोग में लाया जाने वाला रेडियो सिग्नल काफी कमजोर और ऊर्जा काफी कम होगी। मिलने वाले रेडियो सिग्नल में काफी शोरगुल होगा और इसे पकडऩे के लिए बड़े एंटीना की जरूरत होगी।


चांद की कक्षा में प्रवेश
तीसरी बड़ी चुनौती होगी चांद की कक्षा में प्रवेश। इसके लिए ट्रान्स लूनर इंजेक्शन (टीएलआइ) प्रक्रिया शृंखलाबद्ध तरीके से पूरी की जाएगी। चूंकि चांद अपनी कक्षा में गतिशील है इसलिए हर पल उसकी पोजिशन की सटीक गणना आवश्यक है। जब अपनी कक्षा में गतिशील चांद चंद्रयान-2 के अपोगी (चांद की कक्षा में चंद्रयान-2 की चंद्र सतह से अधिकतम दूरी) की ओर बढ़ रहा होगा, तभी यान के थ्रस्टर्स फायर कर उसकी गति कम की जाएगी ताकि वह चांद को कैप्चर कर ले।

यह बेहद जटिल प्रक्रिया होगी और महत्वपूर्ण पल होगा। थोड़ी सी चूक से मिशन विफल हो सकता है। यहां अगर यान की गति बहुत कम या अधिक हुई तो या तो वह चांद से टकराकर ध्वस्त हो सकता है या फिर गहन अंतरिक्ष में विलीन हो सकता है। चांद पर भेजे गए कई मिशन इस पड़ाव को पार नहीं कर पाए।


चंद्र सतह का असमान गुरुत्वाकर्षण बल
चौथी चुनौती चांद की कक्षा में परिक्रमा के दौरान आएगी। चंद्र सतह का द्रव्यमान असमान है जिससे गुरुत्वाकर्षण बल भी असमान होगा। इसका असर यान की कक्षा पर पड़ सकता है। यहां यान की कक्षीय ऊंचाई पर तापीय वातावरण का सटीक आकलन बेहद जरूरी होगा वरना यान के इलेक्ट्रॉनिक्स को खतरा पहुंच सकता है।


सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती
इसके बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की बारी आएगी जिसे दो पार्ट में बांटा गया है। रफ ब्रेकिंग एवं फाइन ब्रेकिंग। चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम के उतरने के दौरान लोकल लेवल पर लग रहे गुरुत्वाकर्षण बल की जानकारी आवश्यक होगी। लैंडिंग के दौरान यान की एनजीसी (नेविगेशन, गाइडेंस एवं कंट्रोल) और प्रणोदन प्रणाली को एक साथ एवं स्वचालित तरीके से काम करना होगा। इसके अलावा लैंडर को ऐसी जगह उतरना होगा जहां से संचार स्थापित हो सके। कम्युनिकेशन शैडो नहीं होना चाहिए।


चंद्रमा की सतह की धूल
लैंडिंग के दौरान चंद्र सतह की धूल छठी बड़ी चुनौती पेश करेगी। चांद का सतह क्रेटर, चट्टानों और धूल से अटा पड़ा है। जब लैंडर का वेग घटाने के लिए इंजन फायर किया जाएगा तब बड़ी मात्रा में धूल उड़ेगी। इसमें ऋण आवेशित धूल कण भी होंगे जो लैंडर से चिपक सकते हैं या सख्त कण लैंडर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे उसके सौर पैनलों की तैनाती, एनजीसी सेंसर की कार्यप्रणाली या अन्य मेकेनिज्म प्रभावित हो सकते हैं।

चांद की सतह का तापमान होगा रोवर की राह में रोड़ा
आखिरी चुनौती होगी चांद की बेहद चुनौतीपूर्ण सतह पर लैंडर और रोवर का परिचालन। चूंकि चांद पर पृथ्वी के 14 दिन के बराबर एक दिन और एक रात होती है इसलिए वहां का सतह अत्यंत ठंड या अत्यंत गर्म हो सकता है। चरम सतही तापमान के अलावा निर्वात के कारण लैंडर और रोवर का परिचालन बेहद कठिन होगा। गौरतलब है कि चंद्रयान में तीन मॉड्यूल होंगे। ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)। मिशन के तहत ऑर्बिटर चांद की कक्षा में परिक्रमा करेगा, वहीं ले लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा जहाँ अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा। इसके बाद रोवर लैंडर से निकलकर चांद की धरती पर चहलकदमी करते हुए 14-15 दिन तक (एक चंद्र दिवस के बराबर) विभिन्न प्रयोगों को अंजाम देगा।

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