वर्ष १९५१-५२ में हुए पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक राज्य में कांग्रेस, जनता पार्टी और जन संघ (अब भाजपा) के बीच ही सीधा मुकाबला होता रहा है, लेकिन तीनों दलों ने शुरू से ही महिलाओं को उम्मीदवार बनाने को तरजीह नहीं दी है। ना सिर्फ शुरुआती चुनावों बल्कि पिछले दो दशक में भी महिलाओं को उम्मीदवार बनाने को लेकर राजनीतिक दलों की सोच में कोई खास बदलाव नहीं आया है, जबकि इस दौर में बेंगलूरु सहित कर्नाटक की कई महिलाओं ने अन्य क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की।
महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधत्व देने के मामले में महिला सशक्तिरण और लैंगिक समानता की तमाम बातें कोरी साबित होती हैं। पिछले चुनावों में भी महिलाओं को बराबरी का हक एक बड़े मुद्दे के रूप में सामने आया था, लेकिन वर्ष २००९ में राज्य की २८ लोकसभा सीटों पर ४२७ प्रत्याशी थे जिनमें महिलाओं की संख्या सिर्फ १९ थी। यानी ९६ फीसदी (४०८) पुरुष प्रत्याशी थे, जबकि आधी आबादी मात्र ४ प्रतिशत उम्मीदवार बनी। और, महिला प्रत्याशियों को उससे भी बड़ा झटका आम मतदाताओं ने दिया क्योंकि वर्ष २००९ में राज्य से एक भी महिला उम्मीदवार को जीत नहीं मिली थी। बाद में २०१३ में हुए मंड्या लोकसभा उपचुनाव में अभिनेत्री रम्या ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी।
महिलाओं की असफलता का दौर २०१४ के लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रहा। २०१४ में भाजपा ने सिर्फ एक महिला को टिकट दिया और उडुपी चिक्कमगलूरु से शोभा करंदलाजे ने जीत भी हासिल की। संयोग से २०१४ में शोभा राज्य से एक मात्र महिला सांसद बनी। वहीं कांग्रेस ने रम्या को मंड्या से और लक्ष्मी हेब्बालकर को बेलगाम से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन दोनों ही चुनाव हार गई।
जनता दल-एस ने सर्वाधिक तीन महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था। जद-एस ने पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा की बेटी और कर्नाटक के सबसे बड़े फिल्म स्टार राजकुमार की बहू गीता शिवराजकुमार को शिवमोगा से, बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबरॉय की सास एवं पूर्व मंत्री जीवराज अल्वा की पत्नी नंदिनी अल्वा को बेंगलूरु मध्य से और मानवाधिकार कार्यकर्ता मनोरमा को बेंगलूरु दक्षिण संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया था। हालांकि कांग्रेस और जद-एस की किसी महिला उम्मीदवार को जीत नहीं मिली थी।
इंदिरा गांधी को मिली राजनीतिक संजीवनी
१९७७ में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हारी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी जीत नसीब नहीं हुई। संसद से करीब एक वर्ष तक दूर रहने के बाद १९७८ में हुए चिकमगलूर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में इंदिरा गांधी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी वीरेंद्र पाटिल को ७० हजार से ज्यादा वोटों से हराकर संसद में दोबारा वापसी की। इंदिरा ने कहा था कि कर्नाटक ने उनको राजनीतिक पुनर्जन्म दिया। इंदिरा, कर्नाटक से चुनाव जीतने वाला सबसे बड़ा नाम रहीं।
सरोजिनी बिंदुराव महिषी रहीं ४ बार सांसद
डॉ. सरोजिनी बिंदुराव महिषी राज्य से सबसे ज्यादा बार निर्वाचित महिला सांसद रहीं। उन्होंने धारवाड़ उत्तर संसदीय क्षेत्र से १९६२, १९६७, १९७१ और १९७७ के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की। इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार में उड्डयन, पर्यटन, विधि एवं न्याय मंत्रालय का जिम्मा संभाला। वहीं, बसव राजेश्वरी ने बल्लारी से १९८४, १९८९ और १९९१ में जीत हासिल की और केंद्र में मंत्री बनीं। १९९१ में तारादेवी सिद्धार्थ को चिकमगलूर से जीत मिली और वे भी नरसिम्हा राव मंत्रिमंडल में मंत्री बनी।