यह सफलता प्रेरक है क्योंकि जब लगभग सभी बच्चे परीक्षा की तैयारी में दिन-रात एक कर रहे थे, महेश निर्माणाधीन भवन में मेहनत मजदूरी कर रहा था। महेश ने परीक्षा के महज पांच दिन पहले छुट्टी ली थी।
यादगीर जिले के महेश ने बताया कि मल्लेशपाल्या में वह अपनी मां और दो भाइयों के साथ रहता है। घर से करीब पांच किलोमीटर दूर जीवन बीमा नगर स्थित कर्नाटक पब्लिक सरकारी स्कूल से उसने पढ़ाई की। लेकिन स्कूल में कन्नड़ व हिन्दी विषयों के नियमित शिक्षक नहीं थे। सेवानिवृत्त होने के करीब सामाजिक अध्ययन विषय के शिक्षक ने किसी तरह कन्नड़ विषय में मदद की जबकि विद्यार्थियों ने हिन्दी विषय की पढ़ाई खुद की।
महेश जब पांच वर्ष का था तब उसके सिर से पिता का साया उठ गया था। मां मल्लम्मा कभी स्कूल नहीं गई और घरों मेें काम कर कई वर्षों से बच्चों का पालन-पोषण करती आ रही है। बच्चे कमाने लगे तब जाकर उसे राहत मिली। महेश का बड़ा भाई भी मेहनत मजदूरी सहित कई अन्य काम करता है। टेम्पो भी चलाता है। लॉकडाउन के पहले बड़ा भाई टेम्पो में ही यादगीर गया लेकिन लॉकडाउन के कारण वहीं फंस गया। महेश का छोटा भाई आठवीं कक्षा का छात्र है।
महेश ने बताया कि लॉकडाउन ने ‘कंगाली में आटा गीला’ का काम किया। मां के पास भी काम नहीं था। सरकार ने बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका के माध्यम से जो राशन किट उपलब्ध कराया उससे पेट की आग बुझी।
बकौल महेश, सबसे कठिन पाठ पर ध्यान केंद्रित करता, पढऩे के लिए पुस्तक और नोट्स के अलावा और कुछ नहीं था, 90 फीसदी से ज्यादा अंकों की उम्मीद कर रहा था, पता नहीं था इतने अच्छे स्कोर आएंगे।
सरकारी स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने की अपील
मेहनत इतनी शांति से करें कि सफलता शोर मचा दे। महेश की इस कामयाबी से गदगद प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा मंत्री एस. सुरेश कुमार सोमवार को खुद उसके घर पहुंचे और उसे मुबारकबाद देकर उसका हौसला बढ़ाया। मंत्री से बातचीत में महेश ने बताया कि वह शिक्षक बनना चाहता है। उसने मंत्री से सभी सरकारी स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने की अपील भी की ताकि उसकी तरह अन्य बच्चों को पढ़ाई में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़े। एक गैर सरकारी संस्थान भी महेश की मदद के लिए आगे आया है।