इस वृक्ष की पूजा क्षेत्रीय लोग करते हैं..
भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय वृक्ष का दर्जा पाने वाले इस असाधारण महावृक्ष को न उपयुक्त सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही है और ना ही इस बारे में अध्ययन किया जा रहा है। वन विभाग व सरकार की लापरवाही के कारण आज इस वृक्ष का अस्तित्व खतरे में हैं। वनवासी सीमावर्ती क्षेत्र सिरसी-सोरब तालुक के सीमावर्ती राजस्व केंद्र के हलेकोप्पा गांव में स्थित इस वृक्ष की पूजा क्षेत्रीय लोग करते हैं।
वनस्पति विज्ञान में पीकस मस्करो कार्पस के नाम से जाना जाता है
इस वृक्ष को वनस्पति विज्ञान में पीकस मस्करो कार्पस के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2008 के दौरान आयोजित कदंबोत्सव में आए तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येड्डियूरप्पा को पश्चिमी घाट कार्यबल के अध्यक्ष अनंत हेगड़े आशीसर के नेतृत्व में ज्ञापन सौंपा गया था। ज्ञापन के माध्यम से वर्ष 2002 के जैव विविधता अधिनियम के तहत इस वृक्ष को राष्ट्रीय वृक्ष घोषित करने की मांग रखी गई थी।
इस वृक्ष को राष्ट्रीय वृक्ष के किंग डूम प्लांट का दर्जा दिया गया
राज्य सरकार की ओर से सौंपे गए प्रस्ताव पर गौर करते हुए केंद्र सरकार ने इस वृक्ष को राष्ट्रीय वृक्ष के किंग डूम प्लांट का दर्जा दिया गया। वर्ष 2010 के अगस्त माह में अनंत हेगड़े आशीसर ने नैसर्गिक परंपरा जैविक महावृक्ष नामक पैनल का अनावरण किया। पश्चिमी घाट कार्यबल की ओर से इस महावृक्ष की सुरक्षा को प्राथमिकता देने संबंधित निर्देश जारी किए गए।इतना होने के बावजूद वर्तमान में इस वृक्ष की स्थिति को देखकर सरकार व विभागीय अधिकारियों की लापरवाही साफ दिखाई देती है। इस वृक्ष को संरक्षित वृक्ष माना जाता है इसके बावजूद भी कोई भी इस वृक्ष की सुरक्षा करने की दिशा में अग्रसर नहीं हुआ। गांव में वृक्ष व इस स्थल की विशेष पूजा की जाती है। ग्रामीण जनता का विश्वास है कि इस वृक्ष में भगवान बसते हैं। ग्रामीण निवासी अपनी क्षमता के अनुसार वृक्ष की रक्षा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
राज्य सरकार की ओर से सौंपे गए प्रस्ताव पर गौर करते हुए केंद्र सरकार ने इस वृक्ष को राष्ट्रीय वृक्ष के किंग डूम प्लांट का दर्जा दिया गया। वर्ष 2010 के अगस्त माह में अनंत हेगड़े आशीसर ने नैसर्गिक परंपरा जैविक महावृक्ष नामक पैनल का अनावरण किया। पश्चिमी घाट कार्यबल की ओर से इस महावृक्ष की सुरक्षा को प्राथमिकता देने संबंधित निर्देश जारी किए गए।इतना होने के बावजूद वर्तमान में इस वृक्ष की स्थिति को देखकर सरकार व विभागीय अधिकारियों की लापरवाही साफ दिखाई देती है। इस वृक्ष को संरक्षित वृक्ष माना जाता है इसके बावजूद भी कोई भी इस वृक्ष की सुरक्षा करने की दिशा में अग्रसर नहीं हुआ। गांव में वृक्ष व इस स्थल की विशेष पूजा की जाती है। ग्रामीण जनता का विश्वास है कि इस वृक्ष में भगवान बसते हैं। ग्रामीण निवासी अपनी क्षमता के अनुसार वृक्ष की रक्षा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
कुछ समाजकंटक इस वृक्ष की जड़ों को जलाने का प्रयास कर रहे हैं
जिन लोगों के भूखंड में इस विशाल वृक्ष की जड़ें व टहनियां फैल चुकी है उन्हें उपयुक्त मुआवजा मुहैया करवाने व उनके हिस्से की भूमि अन्य जगह पर देने संबंधित प्रस्ताव सौंपा गया था। ग्रामीणों का कहना है कि इस वृक्ष की जड़ें व तने फैलते ही जा रहे हैं परंतु अभी तक सरकार की ओर से वृक्ष की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। कुछ समाजकंटक इस वृक्ष की जड़ों को जलाने का प्रयास कर रहे हैं। पर्यावरण प्रेमियों ने सरकार व पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से इस दिशा में ठोस कदम उठाने की मांग की है।