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बांसवाड़ा : बिगड़े बोल और चुनावी शोर में गुम जनता के मुद्दे

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बांसवाड़ाDec 05, 2018 / 02:09 pm

Ashish vajpayee

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बांसवाड़ा : बिगड़े बोल और चुनावी शोर में गुम जनता के मुद्दे

बांसवाड़ा. सियासी उठापटक और टिकटों के जोड़तोड़ का असर चुनावी मुद्दों तक दिखाई पड़ रहा है। विधानसभा चुनाव की घोषणा के पहले जो समस्याएं मुद्दा थीं, वो चुनावी शोर में न जाने कहां खो गई हैं। आलम यह है कि शहर-देहात की जनता और किसानों को जिन मुश्किलों से रोज जूझना पड़ता है उनके बारे में कोई चर्चा कम सुनाई पड़ रही है। चुनावी अखाड़े में ताल ठोक रहे प्रत्याशी और राजनीतिक दल जनता को लोक लुभावन चासनी में डूबे वायदे परोसने में जुटे हैं। राजस्थान पत्रिका टीम ने जनता के बीच जाकर उन मुद्दों को चिन्हित किया तो चुनावी शोर गुल में खो गए।
जर्जर सडक़ : वाहन चलाना दुश्वार कर दिया टूटी सडक़ों ने
शहर हो या गांवों की सडक़ें, कई स्थानों पर इन पर चलना दुश्वार हो गया है। आलम यहां तक है कि कुछ सडक़ों की दशा तो लम्बे समय से खराब है, लेकिन इसके बाद भी ग्रामीण अंचल और शहर के कई इलाकों में इनके सुधार को लेकर कोई चर्चा तक नहीं है। सडक़ की समस्या जनप्रतिनिधियों से अछूती भी नहीं रही है। हालांकि कई स्थानों पर मरम्मत का कार्य चल रहा है। कहीं पेंचवर्क हुआ है तो कई डामरीकरण हो रहा है लेकिन अभी भी बहुत से इलाके हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।
नहरीतंत्र : किसानों के लिए दिक्कत जस की तस
किसानों के लिए नहरों के जर्जर होने की समस्या काफी गंभीर है। फसलों के लिए नहरों पर निर्भर रहने वाले किसान बरसों से इसके सुदृढीकरण की आस में बैठे हैं। इस वर्ष बड़े पैमाने पर नहरों को दुरुस्त करने के जतन शुरू किए गए लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। कई गांवों मे जर्जर नहर से परेशानी है। इससे पानी का नुकसान हो रहा है।टेल के किसानों को समय पर पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और कई किसान पानी के रिसाव के कारण खेत जलमग्र होने से खेती नहीं कर पा रहे हैं।
आवारा मवेशी : न जाने कब कहां से आ जाएं और जान ले लें
शहर की सडक़ों पर दिनरात काल बनकर घूम रहे आवारा मवेशी दर्जनों लोगों को चोटिल कर चुके हैं। यह समस्या गंभीर बन चुकी है। गलियों, सडक़ों पर ही नहीं बल्कि मुख्य मार्गों और बाजारों में भी आवारा मवेशियों से आमजन त्रस्ता है। रोजमर्रा की समस्या के बाद भी कोई जिम्मेदार इस समस्या से जनता को कोई निजात दिलाना नहीं चाहता है। बीते सालों में किसी ने भी इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम नहीं उठाया। नगर परिषद ने इस समस्या के प्रति आंखें मूंद रखी है।
कानून व्यवस्था : चोरों के आतंक ने खूब छकाया
शहर और आसपास के इलाकों में घरों, दुकानों में चोरियों की बढ़ती घटनाओं ने आमजन की रातों की नींद उड़ा रखी है और तो और सडक़ों पर चेन स्नेचिंग और पर्स झपटने की घटनाओं से महिलाओं से लेकर पुरुष तक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। ताजा मुद्दा शराब के अवैध अड्डों और भट्टियों को बंद कराने को लेकर गर्म है। पिछले कुछ महिनों से इन्हें बंद कराने के लिए महिलाओं ने आंदोलन छेड़ रखा है। इसके बाद भी इन अड्डों को समूल बंद कराने को लेकर कार्रवाई कुछ नहीं हो पाई है। सिर्फ रस्म अदायगी तक ही प्रशासन सीमित है।
कृषि उपज मंडी: बम्पर पैदावार, विपणन का बंटाधार
एक ओर जहां बांसवाड़ा की उर्वरा धरा के साथ पानी की उपलब्धता से खूब अनज हो रहा है लेकिन कृषि उपज मंडीमें व्यापार न होने के कारण किसानों को उनकी उपज का पूरा दाम नहीं मिल पा रहा है। जिस कारण उनकी मेहनत कौडिय़ों के भाव व्यापारियों के हाथों बिकने को मजबूर है। बरसों बाद भी कृषि उपज मंडी का व्यवस्थित तौर पर संचालन नहीं हो पा रहा है। मंडी परिसर में सदैव वीरानी छाई रहती है।
इसमें सुधार हो तो किसानों को उनकी मेहनत का सही फल मिल सके और उनके जीवन में सुधार हो।
अवैध पार्किंग और रेडिय़ां : व्यवस्थाओं पर चिंतन तक नहीं
शहर में जिधर नजर डालो उधर अवैध पार्किंग और रेडिय़ां देखने को मिल जाएंगी। इससे यातायात की समस्या पैदा हो गई है। बात शहर के मुख्य बाजारों की करें तो जाने के नाम पर कई बार सोचना पड़ जाता है। शहर में एक भी व्यवस्थित पार्किंग न होने के कारण जहां तहां खड़ी गाडिय़ां व्यापारियों और निवासियों के लिए बड़ी मुसीबत हैं। जहां तहां लगने वाली सब्जियों की दुकानों और रेडिय़ों को लेकर भी आजतक कोई उचित प्रयास नहीं किया गया। यह समस्या भीतरी शहर में रहने वाले लोगों के लिए विकराल है।
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IMAGE CREDIT: फोटो: संजय सिंह कुशवाह

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