बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़, कलर कोटिंग दाल से कैंसर का भी खतरा
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बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़, कलर कोटिंग दाल से कैंसर का भी खतरा
डूंगरपुर . राजकीय विद्यालयों में छात्र-छात्राओं के स्वास्थ्य के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है। देश के भविष्य को असाध्य बीमारियों की थाली हर रोज परोसी जा रही है। मामला प्रदेश के विद्यालयों में भेजी गई कलर कोटिंग दाल की पहली खेप से जुड़ा हुआ है। गत सरकार के कार्यकाल में पोषाहार के लिए भेजी गई दाल के नमूने अमानक होने के बावजूद डूंगरपुर को छोड़ कर शेष पूरे प्रदेश में यह दालें स्कूलों की रसोई तक पहुंच गई हैं और संभवतया स्कूलों में यही दाल बच्चों को खिलाई भी जा रही है। दाल आपूर्ति का जिम्मा भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ को सौंपा गया था।
वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों के मुताबिक दालों को चमकीला बनाने के लिए ‘कलर कोटिंग’ की जाती है। यह एक प्रकार से अप्राकृतिक डाई है। यह एक धीमा जहर का काम करता है। कोटिंग दालों के नियमित सेवन से अपच व पेट रोग हो सकते है। इन दालों के प्रयोग से तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। वहीं, न्यूरो मस्क्यूलर डिस ओवर होने की आशंका रहती है। लम्बे समय तक कोटिंग दालों के प्रभाव से कैंसर हो सकता है। खासकर बच्चों पर तो बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चों का पाचन तंत्र बिगडऩे के साथ ही दिमागी संतुलन अनियंत्रित होना वहीं, याददाश्त कमजोर होना, नेत्ररोग सहित विभिन्न प्रकार के रोगों से घिर सकते हैं।
यह है मामला
डूंगरपुर सहित पूरे प्रदेश में नवम्बर 2018 में पहली बार स्कूलों के लिए छिल्का युक्त उड़द की दाल के ट्रक पहुंचे थे। डूंगरपुर की डीईओ गिरिजा वैष्णव ने कट्टों में हाथ डाला तो हाथ काले हो गए, उन्हें गुणवत्ता को लेकर शंका हुई। बाद में दाल के दो नमूने जयपुर को भेजे। इसमें मुख्य खाद्य विश्लेषक पंकज कुमार ने रिपोर्ट में लिखा यह दाल मानव उपभोग के लिए असुरक्षित और अनफिट है।
जयपुर से शुरू हुई हलचल
राजस्थान पत्रिका ने 19 जनवरी 2019 के अंक में ‘काली दाल का काला खेल, कलर कोटिंग की घालमेल’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर उजागर किया।
इस पर जयपुर से हलचल शुरू
हो गई है। मिड-डे मील के
उपायुक्त ने डीईओ प्रारम्भिक ने पूरे मामले की तथ्यात्मक रिपोर्ट मांग ली है।