शहादत के तीन साल बाद भी नहीं बना शहीद हर्षित भदौरिया का स्मारक, सांसद से भूमि आवंटन की मांग तुलसीदेवी ने बताया कि पति ने जिंदगी के करीब 19 साल फौज में बिताए पर आखिर में पेंशन नहीं मिल पाई। कारण बताते हुए कहा कि सन् 1992 में ससुर बीमार होने पर पति ने 20 दिन की छुट्टी की मांगी, लेकिन 8 दिन की ही मंजूरी मिली। इलाज के कुछ दिन बीते ही थे कि ससुर की मौत हो गई। ऐसे में पति समय पर लौट नहीं पाए। देरी से जाने पर अफसरों ने लताडकऱ भगा दिया। इससे पति का दिमागी संतुलन बिगड़ गया और वापसी ही नहीं की। फिर कुछ वक्त बीता, तो रेजिमेंट ने भगोड़ा घोषित कर पेंशन समेत सभी परिलाभ छीन लिए। तब से गांव में खेती-बाड़ी कर गुजारा कर रहे हैं। सन् 2002 में जब सेना से उनके घर मैडल और प्रशस्ति पत्र भेजा गया, तो उन्होंने पेंशन नहीं मिलने की पीड़ा उठाई। रेजीमेंट और सैन्य ट्रिब्यूनल में भी गुहार की, लेकिन लाभ नहीं मिला।
ये कैसा अन्याय है
तुलसी देवी कहती हैं कि 15 साल की अच्छी सेवा पर दो साल का इजाफा किया गया। पदक भी दिया लेकिन वापसी नहींं कर पाने की गलती की सजा परिवार क्यों भुगते। अब 62 वर्ष की उम्र में पति खेती में हाथ बंटाने की स्थिति में नहीं है। खुद भी संघर्ष करते-करते थक चुकी है। बीमार है, पर इलाज कराने का भी संकट है। इकलौता बेटा चौकीदारी कर जैसे-तैसे घर चलाने में मदद कर रहा है।
गुजरात ने दी थी माही बांध बनाने की 55 फीसदी लागत, इसलिए राजस्थान को अबतक करनी पड़ रही है माही के पानी की ‘पहरेदारी’ दिवंगत भी घोषित कर डाला 2007 में, सैनिक कल्याण कार्यालय ने बताई हकीकतहैरानी भरा तथ्य यह भी है कि जाट रेजिमेंट ने शंभुनाथ को 2007 में दिवंगत भी घोषित कर दिया। 11 फरवरी, 2008 को जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय उदयपुर ने जाट रेजिमेंट को खत लिखकर बताया कि भगोड़ा घोषित शंभुनाथ जीवित है और उसकी पत्नी तुलसीदेवी द्वारा प्रस्तुत पारिवारिक पेंशन के प्रार्थना पत्र पर गौर कर कार्रवाई की जाए। इसके बाद भी कार्रवाई नहीं हुई है।
इनका कहना है…
शंभुनाथ भगोड़ा घोषित है। पत्नी की परिवेदना पर तस्दीक के बाद जाट रेजिमेंट को लिखा गया। उसके बाद कार्रवाई हुई या नहीं, जानकारी में नहीं है। परिवार को पेन्यूअरी ग्रांट मिल सकती है। इसके लिए फिर प्रयास करेंगे।
कर्नल उदयसिंह सोलंकी, सैनिक कल्याण अधिकारी उदयपुर