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बांसवाड़ा

जानिएं बांसवाड़ा जिले में पहाड़ी पर विराजमान कोडिया गणपति की महिमा, यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते है मंशापूर्ण विनायक

– Kodiya Ganpati Banswara, Famous Ganesh Temple In Rajasthan
– पहाड़ी पर बिराजे हैं कोडिया गणपति- भक्तों की अगाध आस्था का केन्द्र- लोहारिया में 600 वर्ष प्राचीन लोहपुर पाटन नगर की साक्षी स्थली है कोडिया गणपति

बांसवाड़ाSep 03, 2019 / 12:01 pm

Varun Bhatt

जानिएं बांसवाड़ा जिले में पहाड़ी पर विराजमान कोडिया गणपति की महिमा, यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते है मंशापूर्ण विनायक

जानिएं बांसवाड़ा जिले में पहाड़ी पर विराजमान कोडिया गणपति की महिमा, यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते है मंशापूर्ण विनायक

लोहारिया/बांसवाड़ा. बांसवाड़ा-उदयपुर स्टेट हाइवे 32 पर अवस्थित लोहारिया कस्बे के अतुल कोडिया पहाड़ के शिखर पर विघ्नहर्ता गणपति का मंदिर भक्तों की अगाध श्रद्धा का केन्द्र है। जिले में पहाड़ी पर अवस्थित इस एकमात्र गणेश मंदिर के समीप नैसर्गिक सौन्दर्य श्रद्धालुओं और पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। पहाड़ पर बिराजे गजानन मंशापूर्ण गणपति के नाम से विख्यात है। संतान प्राप्ति, आधिव्याधि, राजकीय सेवा में सफलता, विवाह में विलंब आदि से संबंधित कामना पूर्ण होने पर यहां वर्ष पर धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। कोडिया पहाड़ के सामने नीचे तजेला तालाब की आकृति भारत के मानचित्र सा आभास कराती है। सामने हरीतिमा से युक्त पहाड़ और सूर्यास्त का नजारा सनसेट पॉइंट का अहसास करवाता है। देवस्थान विभाग के प्रत्यक्ष प्रभार में शुमार यह मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहा है। यहां पौधरोपण, सौंदर्यीकरण व चारदीवारी निर्माण के स्वीकृत कार्य वन विभाग व जिला परिषद के बीच फुटबॉल बनकर रह गए हैं। इस कारण से पहाड़ अतिक्रमण की मार झेल रहा है। बरादरी व सनसेट प्वाइंट का निर्माण होने पर यह स्थल जिले के पर्यटन मानचित्र में नाम अंकित करवा सकता है।
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विकास के प्रयास
लोहारिया के जयेश आमेटा बताते हैं कि मंदिर विकास के लिए गठित कोडिया गणपति मंदिर कमेटी अध्यक्ष मणिलाल कलाल के नेतृत्व में जुटे हुए हैं। वही मंदिर विकास में तत्कालीन कोषाध्यक्ष स्व. मोहनलाल द्विवेदी का योगदान भी स्मरणीय है। 10 दिवसीय गणेशोत्सव गणेश चतुर्थी पर भक्तों का मेला व छप्पन भोग अर्पण महाप्रसादी आयोजन होता है।
समय-समय पर जीर्णोद्धार
लोहारिया में किसी समय में अमेज माता की पहाड़ी में लोहा व स्वर्ण खनन का कार्य करने वाले पंचाल जाति वर्ग के लोग कोडिया पहाड़ की तलहटी में निवासरत थे। प्रात: ध्वजाविहीन पहाड़ दर्शन को ठीक नहीं मानकर तेजा पंचाल ने एक छोटी देवरी का निर्माण करवाया। जिसका बाद में जीर्णोद्धार हुआ। 2006 में आए तेज अंधड़ में शिखर के गिरने पर ग्रामवासियों व वैष्णव समाजजनों ने वर्तमान विकसित गणेश धाम में परिणित किया।
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यह भी किंवदंती
एक किवदंती और भाट के चोपड़े में लिखित आलेख अनुसार रियासत काल में कोडिया पहाड़ से अमेज माता पहाड़ तक रस्सी बांध उस पर चल कर पार करने की शर्त को गलकी नामक नटनी ने स्वीकार किया। जीतने पर आधा राज्य देने की शर्त पर उसने चलना आरंभ किया। तकरीबन आधी दूरी पार करने पर आधा राज्य जाने के डर से राजा ने धारदार उपकरण से रस्सी को काट दिया। जिसमें नटनी मृत्यु को प्राप्त हुई। जिसकी समाधि आज भी सिरावाली डूंगरी पर उस घटना की गवाही स्वयंमेव दे रही है। नटनी के चरण चिन्ह मंदिर परिसर में आज भी स्थापित है।

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