लोहारिया के जयेश आमेटा बताते हैं कि मंदिर विकास के लिए गठित कोडिया गणपति मंदिर कमेटी अध्यक्ष मणिलाल कलाल के नेतृत्व में जुटे हुए हैं। वही मंदिर विकास में तत्कालीन कोषाध्यक्ष स्व. मोहनलाल द्विवेदी का योगदान भी स्मरणीय है। 10 दिवसीय गणेशोत्सव गणेश चतुर्थी पर भक्तों का मेला व छप्पन भोग अर्पण महाप्रसादी आयोजन होता है।
लोहारिया में किसी समय में अमेज माता की पहाड़ी में लोहा व स्वर्ण खनन का कार्य करने वाले पंचाल जाति वर्ग के लोग कोडिया पहाड़ की तलहटी में निवासरत थे। प्रात: ध्वजाविहीन पहाड़ दर्शन को ठीक नहीं मानकर तेजा पंचाल ने एक छोटी देवरी का निर्माण करवाया। जिसका बाद में जीर्णोद्धार हुआ। 2006 में आए तेज अंधड़ में शिखर के गिरने पर ग्रामवासियों व वैष्णव समाजजनों ने वर्तमान विकसित गणेश धाम में परिणित किया।
एक किवदंती और भाट के चोपड़े में लिखित आलेख अनुसार रियासत काल में कोडिया पहाड़ से अमेज माता पहाड़ तक रस्सी बांध उस पर चल कर पार करने की शर्त को गलकी नामक नटनी ने स्वीकार किया। जीतने पर आधा राज्य देने की शर्त पर उसने चलना आरंभ किया। तकरीबन आधी दूरी पार करने पर आधा राज्य जाने के डर से राजा ने धारदार उपकरण से रस्सी को काट दिया। जिसमें नटनी मृत्यु को प्राप्त हुई। जिसकी समाधि आज भी सिरावाली डूंगरी पर उस घटना की गवाही स्वयंमेव दे रही है। नटनी के चरण चिन्ह मंदिर परिसर में आज भी स्थापित है।