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ग्रांड पेरेंट्स डे : ‘माता-पिता’ का छूटा साथ तो ‘नाती-पोतों’ को ममता के आंचल में सहेज रही हैं ‘दादी-नानी’

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बांसवाड़ाSep 09, 2018 / 12:05 pm

Ashish vajpayee

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ग्रांड पेरेंट्स डे : ‘माता-पिता’ का छूटा साथ तो ‘नाती-पोतों’ को ममता के आंचल में सहेज रही हैं ‘दादी-नानी’

रामकरण कटारिया. बांसवाड़ा. यह सब जानते हैं कि हर आंगन की शोभा बालक की चहल-कदमी से ही बढ़ती है। वहीं बालक के जीवन में संस्कार भी दादा-दादी ही भरते हैं। दादा-दादी, नाना-नानी अपने बचपन में सुनी लोरियां, ज्ञानप्रद कहानियां समेत जीवन के अनुभवों के साथ बालक को कई संस्कारों से पुष्ट करते हैं। हालांकि बालक की प्रथम गुरु माता ही होती है, लेकिन कई ऐसे अभागे बालक-बालिकाएं भी हैं, जिनके माथे से माता-पिता का साया छूट जाने पर उन्हें नाना-नानी या दादा-दादी ही पाल-पोषित कर रहे हैं।
यहां समीप के सियापुर गांव में भी नाना-नानी ने अपनी दोयती को दुलार देकर उसे सक्षम बनाया जा रहा है। पिता का बीमारी के चलते साया सिर से उठ गया तो मां ने भी अपनी ममता से मुंह मोड़ लिया। डेढ़ साल की बालिका को नाना-नानी का दुलार मिला और वह अब अच्छी शिक्षा भी प्राप्त कर ही है। नाना कान्हे व नानी कसरी ने बताया कि उनकी दोयती शिल्पा 11वीं कक्षा में अध्ययनरत है। नाना-नानी का दुलार भी शिप्ल्पा को ऐसा मिला है कि छोटी सी उम्र में ही मां-बाप से बिछुडऩे की तनिक भी कमी नहीं खलने दी।
दादा-दादी पर जिम्मेदारी
कटुम्बी में बेटे की मौत एवं पुत्रवधू के नातरे चले जाने के बाद घर एवं दो बच्चों की जिम्मेदारी दादा-दादी के कंधों पर हैं। अभावों में जैसे-तैसे गुजर बसर के बावजूद बच्चों की हर जरूरत पूरी की जा रही है। इसी प्रकार से कटूम्बी में दादा-दादी पर पांच बच्चों की जिम्मेदारी है। पेंशन से जैसे-तैसे छोटी-मोटी जरूरतें पूरी होती हैं, लेकिन शिक्षा सहित अन्य इंतजाम को पूरा किया जा रहा है।
आ जाता है बचपन याद
बच्चों को खिलाते व लोरिया सुनाते दादा-दादी को देख हर किसी को अपने बचपन की यादें ताजा हो आती है। यहां ठीकरिया में आठ माह की सिया को नानी चन्द्रप्रभा ने अपने बचपन में सुनी लोरियां सुनाई। जिन्हें सुन अन्यों को भी अपना बचपन याद आ गया। चन्द्रप्रभा की पुत्री इन दिनों यहां आई हुई है।
…लंबी फेहरिस्त
सियापुर का मामला तो बानगीभर है। ऐसे में कई मामले पालनहार योजना में भी पंजीकृत है। जिसमें माता-पिता के अभाव में बच्चों का पालन-पोषण नाना-नानी या दादा-दादी की ओर से किया जा रहा है। अभावों के बावजूद कई दादा-दादी बच्चों को बढिय़ा शिक्षा देकर आगे बढ़ाने की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं।

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