कटुम्बी में बेटे की मौत एवं पुत्रवधू के नातरे चले जाने के बाद घर एवं दो बच्चों की जिम्मेदारी दादा-दादी के कंधों पर हैं। अभावों में जैसे-तैसे गुजर बसर के बावजूद बच्चों की हर जरूरत पूरी की जा रही है। इसी प्रकार से कटूम्बी में दादा-दादी पर पांच बच्चों की जिम्मेदारी है। पेंशन से जैसे-तैसे छोटी-मोटी जरूरतें पूरी होती हैं, लेकिन शिक्षा सहित अन्य इंतजाम को पूरा किया जा रहा है।
बच्चों को खिलाते व लोरिया सुनाते दादा-दादी को देख हर किसी को अपने बचपन की यादें ताजा हो आती है। यहां ठीकरिया में आठ माह की सिया को नानी चन्द्रप्रभा ने अपने बचपन में सुनी लोरियां सुनाई। जिन्हें सुन अन्यों को भी अपना बचपन याद आ गया। चन्द्रप्रभा की पुत्री इन दिनों यहां आई हुई है।
सियापुर का मामला तो बानगीभर है। ऐसे में कई मामले पालनहार योजना में भी पंजीकृत है। जिसमें माता-पिता के अभाव में बच्चों का पालन-पोषण नाना-नानी या दादा-दादी की ओर से किया जा रहा है। अभावों के बावजूद कई दादा-दादी बच्चों को बढिय़ा शिक्षा देकर आगे बढ़ाने की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं।