कथावाचक अंशुमान व्यास का कहना है कि वागड़ में कथा करने का अवसर पहली बार मिला। पहली बार में ही जो अनुभूति हुई वो पहले कभी नहीं हुई। जहां कथा हो रही है वह स्थान जैन संतों के ठहरने का प्रबंध के साथ ही विविध धार्मिक आयोजन के लिए है। उसके बाद भी जैन समाजजनों ने कथा के लिए भवन को समर्पित कर दिया। मैंने 15-16 वर्ष के कथावाचन के दौर में पहली बार दो समाजों के बीच सौहार्द और आपसी प्रेम देखा है। जो काफी सराहनीय है।
पंकज जैन ने बताया कि संत भवन में जैन समाज के कार्यक्रम होते हैं। जब कथा आयोजकों ने गोशाला के करीब कथा कराने की बात कही तो मैंने भवन में कथा कराने के लिए कहा, ताकि श्रावकों और कथावाचक को किसी प्रकार की असुविधा न हो और बारिश भी व्यवधान न डाल सके। इससे दोनों समाजों में आपसी प्रेम भी बढ़ेगा। यही सब कुछ सोच कर कथा भवन में कराने की बात रखी।
आयोजक समिति के मोहनलाल पंड्या ने बताया कि कथा आयोजन के लिए संत भवन समर्पित करने और कथा वाचक एवं दल के लिए व्यवस्था करने से समिति को आर्थिक लाभ भी हुआ। कम बजट में कथा आयोजित होना संभव हो रहा है। जैन समाजजनों का प्रेम और सौहाद्र्र से सभी प्रफुल्लित भी हो रहे हैं। यह अपने आप में सराहनीय है और सभी के लिए प्रेरणादायी है।
जैन मुनि सुयशसागर का कहना है कि धन्य होते हैं वे सभी आयोजक, जो ऐसे आयोजनों में तन, मन, धन से समर्पण करते हैं। समाजजनों विशेषकर पंकज जैन का सहयोग प्रशंसनीय है। जिन्होंने संत भवन में कथा कराने की अनुमति देकर व्यवस्थाएं की।
बांसवाड़ा. संत भवन में श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे वाचक पं. अंशुमान व्यास ने दान-पुण के महत्व को बताया। उन्होंने बताया कि दान-पुण्य करने से धन की पवित्रता बढ़ती है। प्रत्येक को नियमित तौर जितना संभव हो उतना दान करने की बात कही। इसके अलावा धार्मिक ग्रंथों को नियमित पढऩे पर भी जोर दिया। कथा के दौरान नृसिंह अवतार का भी वर्णन किया गया और झांकी प्रस्तुत की गई। प्रारंभ में दशामाता मंदिर गादिपति राजूबेन से महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया।