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बांसवाड़ा

Patrika Campaign : बांसवाड़ा में मंडराया सीकल सेल का खतरा, यह बीमारी कम उम्र में दे देती है मौत

बांसवाड़ा जिले के सज्जनगढ़ क्षेत्र में बहुतायत हैं मरीज, डेजर्ट मेडिसिन रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
 

बांसवाड़ाAug 19, 2017 / 01:35 pm

Ashish vajpayee

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चिराग द्विवेदी. बांसवाड़ा. आनुवांशिक रोगों में सबसे खतरनाक ‘सिकल सेल एनिमिया’ ने जिले के जनजाति क्षेत्र में व्यापक रूप से पैर पसार लिए हैं। सज्जनगढ़ इलाके में इसका स्तर सबसे गंभीर पाया गया है। इस रोग में पीडि़त महिला की आयु 48 और पुरुष की आयु ४२ साल तक सीमित होने का खतरा होता है।
सज्जनगढ़ की रिपोर्ट पॉजीटिव
जोधपुर स्थित डीएमआरसी (डेजर्ट मेडिसिन रिसर्च सेंटर) के एक शोध में यह तथ्य सामने आए हैं। रिसर्च सेंटर की ओर से राज्य में 36 हजार बच्चों के ब्लड सेंपल लिए गए। इनमें से छह हजार बच्चे बांसवाड़ा के थे। बांसवाड़ा के सज्जनगढ़ क्षेत्र में संचालित मां-बाड़ी और छात्रावासों के बच्चों के सेंपल लिए गए जिनमें सिकल सेल एनिमिया की रिपोर्ट सबसे ज्यादा पॉजीटिव पाई। यह जानकारी डिप्टी सीएमचओ डॉ रमेश शर्मा ने दी।
यह आनुवांशिक रोग है। इस रोग से ग्रसित बच्चे दो सिकल सेल के जींस के साथ पैदा होते हैं। जो प्रत्येक माता-पिता से मिलता है। यदि एक सिकल सेल जीन है तो सिकल सेल ट्रेट होता है।यह लाल रक्त कोशिकाओं से जुड़ा रोग है। सिकल सेल होने के बाद लाल रक्त कोशिकाओं में हिमोग्लोबीन वहन करने की क्षमता खत्म हो जाती है। इससे रक्त की कमी होने लगती है।
रोग के लक्षण
इस रोग का सबसे प्रमुख लक्षण है जोड़ों में दर्द। इसके अलावा हाथ पैरों में सूजन आने लगती है, शरीर में कमजोरी भी आ जाती है। इसके कारण शरीर में बार बार रक्त की कमी होने लगती है। उपचार इस रोक का सटीक उपचार तो उपलब्ध नहीं है लेकिन उपचार से जटिलताएं कम की जा सकती हैं।
आगे क्या
इस रिपोर्ट के बाद अब डीएमआरसी और जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से सज्जनगढ़ क्षेत्र में घर घर सर्वे कराया जाएगा। जिन लोगों में यह रोग सामने आया, उन्हें जागरूक किया जाएगा। रिसर्च सेंटर के डॉ. एसएस मोहंती ने बताया कि यह बीमारी ट्रायबल लोगों की बीमारी है। चिकित्सा विभाग को निचले स्तर पर भी काम करना होगा।
इनका कहना है


यह बीमारी दो प्रकार से होती है। मरीज को रोग के साथ उसके लक्षण भी दिखते हैं, वहीं कुछ में सिर्फ रोग ही विद्यमान होता है। एेसे में दोनों प्रकार के मरीजों को अलग अलग तरीके से समझाना आवश्यक है। जिससे यह रोग आगे न बढ़ पाए।
डॉ. रमेश शर्मा, डिप्टी सीएमएचओ

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