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बांसवाड़ा

संभल के जनाब, यह है बांसवाड़ा कलक्ट्रेट

People of Sambhal, this is Banswara Collectorate प्रशासन, पुलिस एवं गांवों की सरकार का जिला मुख्यालय भवन यानी कलक्ट्रेट खतरे के साए में है। यहां की छतें व दीवारें जर्जर होने लगी है। कई हिस्सों में तो छत का प्लास्टर तक नीचे आ गया है। हालात यह है कि कलक्ट्रेट के गलियारे से गुजरने वाले या कक्षों में जाने वाले लोग तो इस बात को लेकर आशंकित रहते है कि कही छत का प्लास्टर उन पर ही ना गिर जाए।

बांसवाड़ाAug 06, 2022 / 09:10 pm

Narendra Kumar Verma

संभल के जनाब, यह है बांसवाड़ा कलक्ट्रेट

संभल के जनाब, यह है बांसवाड़ा कलक्ट्रेट

नरेन्द्र वर्मा People of Sambhal, this is Banswara Collectorate प्रशासन, पुलिस एवं गांवों की सरकार का जिला मुख्यालय भवन यानी कलक्ट्रेट खतरे के साए में है। यहां की छतें व दीवारें जर्जर होने लगी है। कई हिस्सों में तो छत का प्लास्टर तक नीचे आ गया है। हालात यह है कि कलक्ट्रेट के गलियारे से गुजरने वाले या कक्षों में जाने वाले लोग तो इस बात को लेकर आशंकित रहते है कि कही छत का प्लास्टर उन पर ही ना गिर जाए। चौकान्ने वाली बात यह है कि जिले के आला अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की रोजाना यहां आवाजाही के बावजूद कलक्ट्रेट परिसर मंडरा रहे खतरे को कोई भांप नहीं पा रहा है। प्रस्तावित मिनी सचिवालय का निर्माण भी अभी तक अधर में होने से कलक्ट्रेट को जल्द नया भवन मिलने की संभावना भी अभी कोसो दूर ही है।
कलक्ट्रेट परिसर में जिला कलक्टर, पुलिस अधीक्षक, जिला परिषद समेत एक दर्जन से अधिक सरकारी विभाग है। जिला एवं सत्र न्यायालय व अन्य कोर्ट भी इसी परिसर में संचालित है। जिला मुख्यालय के अधिकांश प्रमुख सरकारी विभाग एक ही परिसर में होने के बावजूद यहां की सालों पुरानी इमारत एवं परिसर की व्यवस्था को लेकर कोई गंभीर नहीं है।
कार व कक्ष का फासला

आला अधिकारी कारों से आते है। अपने कक्ष या सभागार में जाने के बाद वापस कारों से ही सीधे लौट जाते है। उनके कलक्ट्रेट परिसर का निरक्षण नहीं करने और अधीनस्थ अधिकारियों व कर्मियों के इस और ध्यान नहीं देने से समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
कुछ भी नहीं ठीक
कलक्ट्रेट भवन में एक दर्जन से अधिक सरकारी महकमे है। इनमें उपखंड कार्यालय भी है। यहां कार्यालय कक्ष में छत का प्लास्टर गिर चुका है। वही कलक्ट्रेट के गलियारे में भी कई हिस्सों से छतों से प्लास्टर गायब है। समूचे भवन के बाहरी व पिछवाड़े हिस्से की दीवारों पर कांई छाई हुई है और मुंडेर तक जंगली पौधे जमीन पर झांक रहे है। मुख्य परिसर के सामने ही मिनी गार्डन गाजर घास से आबाद हो रहा है। परिसर में एक दो नहीं वरन कई हिस्से में सड़कों पर गड्ढे पसर हुए है। यह बरसाती पानी के तालाब बन कर दुर्घटना को ही न्योता दे रहे है।
प्रभु बोला, मैं, कैसे मिलने जाऊ

कलक्ट्रेट में प्रवेश की राह की बसावट सालों पुराने घाटे की भांति है। इस राह को सहज एवं आराम दायक नहीं बनाने से दुर्घटनाएं घटित हो रही है। दिव्यांग जनों को अकेले या फिर ट्राईसाइकिल से भी कलक्ट्रेट में आना जोखिम से कम नहीं रहा है। बिलडी निवासी दिव्यांग प्रभुलाल ने बताया कि उसकी पेंशन रोक दी है, यहां कलक्ट्रेट चक्कर लगाने पड़ रहे है। कलक्ट्रेट का रास्ता चढ़ाई वाला होने से अकेले जाना संभव नहीं है। परिजनों की मदद से ही कार्यालय तक पहुंच पाता है।
वर्जन
कलक्ट्रेट भवन वर्ष 1948 में बनी है। सार्वजनिक निर्माण विभाग ने सालों पहले ही कलक्ट्रेट भवन को नकारा घोषित कर रखा है।जल्द भवन बनना चाहिए। हालांकि इमारत मजबूत है, लेकिन यह जर्जर होने लगी है। टूट फूट भी बढ़ती जा रही है।
नंदलाल पुरोहित, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व बार एसोसियेशन अध्यक्ष
पचास लाख का बजट

मिनी सचिवालय भवन का निर्माण प्रस्तावित है। सचिवालय के लिए स्थल जिला प्रशासन तय करेगा, डीपीआर के लिए पचास लाख रुपए का बजट सरकार से मांगा है।
हरिकेश मीणा, अधीक्षण अभियंता, सार्वजनिक निर्माण विभाग

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