scriptbanswara rathotsav special : भगवान नेमीनाथ के बारात की यादें ताजा करता है जैन धर्म का रथोत्सव | Rathotsava of Jainism brings back memories of Lord Neminath's processi | Patrika News
बांसवाड़ा

banswara rathotsav special : भगवान नेमीनाथ के बारात की यादें ताजा करता है जैन धर्म का रथोत्सव

दस लक्षण महापर्व समापन के साथ जैन समाज द्वारा निकाली जाने वाली रथयात्रा वर्षों से जन आकर्षण का केन्द्र रही है। इसके लिए जिले के बड़ोदिया कस्बे में करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जैन समाज द्वारा सागवाड़ा में बनवाकर लाया काष्ठ रथ स्थापत्य एवं वास्तुकला का उदाहरण है। आध्यात्मिक दृष्टि से जैन धर्म का रथोत्सव भगवान नेमीनाथ के बारात की यादें ताजा करता है।

बांसवाड़ाSep 15, 2019 / 06:39 pm

deendayal sharma

banswara rathotsav special : भगवान नेमीनाथ के बारात की यादें ताजा करता है जैन धर्म का रथोत्सव

banswara rathotsav special : भगवान नेमीनाथ के बारात की यादें ताजा करता है जैन धर्म का रथोत्सव

बांसवाड़ा/बड़ोदिया. दस लक्षण महापर्व समापन के साथ जैन समाज द्वारा निकाली जाने वाली रथयात्रा वर्षों से जन आकर्षण का केन्द्र रही है। इसके लिए जिले के बड़ोदिया कस्बे में करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जैन समाज द्वारा सागवाड़ा में बनवाकर लाया काष्ठ रथ स्थापत्य एवं वास्तुकला का उदाहरण है। इसे आदिवासी समाज के लोग ही बड़ोदिया लाए और तभी से उनके वंशज ही रथ को कस्बे में अपने कंधों पर उठाकर घुमाते हैं। रथ कंधों पर लेकर आगे-पीछे दौड़ाने का दृश्य हर किसी को बरबस आकर्षित करता है, जिसे देखने हजारों लोग एकत्र होते हैं।
दरअसल, यह काष्ठ रथ सांस्कृतिक झलक दिखता है। इसमे जैन दर्शन के प्रतीकों का आधार एवं भारतीय संस्कृति के रंग दिखलाई देते हैं। रथ पर दिगम्बर मुनि मुद्रा, देव देवांगनाओं, हाथी, घोड़े, सिंह आदि पशु-पक्षियों की आकृति से सुसज्जित रथ के शिखर पर लगे पांच रजत छत्र जैन धर्म की पताका फहराते प्रतीत होते हैं। इसका आभामण्डल एवं चंवर जैसे प्रातिहार्य तीर्थंकर भगवंतों की महिमा मंडन करते हैं। रथ पर धर्म और राष्ट्र रक्षा का संदेश देते द्वारपाल और रक्षकों के उत्कीर्ण चित्र, शाही हाथियों की सवारी करते चक्रवती और महाबली राजाओं के चित्र पुरातन वैभव और समृद्ध गौरवशाली इतिहास बताते हैं। इसके साथ ही दही बिलोते नर-नारियों की आकृतियां भगवान नेमिनाथ और भगवान श्रीकृष्ण के युग का स्मरण कराकर अपनी परंपराओं को जीवित रखने का संदेश देती हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से खास महत्ता है रथ की
जैन मतानुसार 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ व भगवान श्रीकृष्ण एक ही के परिवार से थे। जैन शास्त्र में वर्णित कथा के अनुसार समाज के वरिष्ठ कांतिलाल खोडनिया बताते हैं कि नेमिनाथ भगवान की बारात ठाठ-बांट के साथ शौरीपुर से जुनागढ़ की ओर जा रही थी। जैसे ही नेमिकुमार भगवान दूल्हा बनकर रथ पर सवार होकर राजुल राजमती को ब्याहने के लिए निकले, उनके कानो में निरीह पशुओं का करूण क्रन्दन सुनाई दिया। उन्होंने तुरंत अपने रथ को मोड़ा तथा मंत्री को पशुओं के चीत्कार का कारण पूछा। इस पर मंत्री ने बताया कि राजन बारात के स्वागत में भोजन के लिए इन पशुओं का वध किया जाएगा। यह सुनते ही नेमिनाथ स्तब्ध रह गएए उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली कि मेरे निमित्त इन निरीह पशुओं की हिंसा, नहीं मुझे यह विवाह नहीं करना है। इतना कहते हुए उन्होंने रथ गिरनार गुजरात के पर्वत की ओर मोड़ दिया और वहां जाकर साधना में लिन हो गए। इसी गिरनार पर्वत से उनके तप, ज्ञान और मोक्ष कल्याणक हुए। उधर, राजुल, जिससे नेमिकुमार का विवाह होना था, वह भी नेमिकुमार के मार्ग पर चलीं और आर्यिका दीक्षा धारण कर साधना में लीन हो गई। इसलिए धर्म की प्रभावना, अहिंसा का संदेश आौर भगवान के विहार के लिए प्रतीक के रूप में रथ को हर वर्ष नगर भ्रमण के लिए निकाला जाता है।
हर समाज के लोगों की उमड़ती है भीड़
रथयात्रा देखने के लिए जैन समाज की नहीं, सकल समाज विशेषकर आदिवासी समाज की उत्सुकता ज्यादा रहती है। बिना किसी सूचना के आदिवासी समाज के लोग वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसरण में हर बार द्वितीया को होने वाले रथोत्सव को नहीं भुलते और रथ दर्शन कर अक्षत-पुष्प आदि से स्वागत करते है। वे यहां लगने वाले मेले में खरीदारी का भी भरपूर आनंद लेते हैं।

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