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बांसवाड़ा

खेल दिवस : सरकारी उपेक्षा और अभावों की शिकार बांसवाड़ा की प्रतिभाएं, एथलेटिक्स से लेकर नौकायन तक में लहरा सकती है परचम

– Sports day News, International Sports Day, World Sport Day
– गरीबी और पिछड़ेपन की जगह वैभव होता तो न जाने कितने बुधिया परचम लहराते- खेल दिवस पर विशेष, बांसवाड़ा जिले में सरकारी उपेक्षा से पिछड़े हैं खेल और खिलाड़ी

बांसवाड़ाAug 29, 2019 / 12:56 pm

deendayal sharma

खेल दिवस : सरकारी उपेक्षा और अभावों की शिकार बांसवाड़ा की प्रतिभाएं, एथलेटिक्स से लेकर नौकायन तक में लहरा सकती है परचम

खेल दिवस : सरकारी उपेक्षा और अभावों की शिकार बांसवाड़ा की प्रतिभाएं, एथलेटिक्स से लेकर नौकायन तक में लहरा सकती है परचम

बांसवाड़ा. खेल यानी दमखम का प्रदर्शन। रोजमर्रा की जिंदगी में यह दमखम रोज दिखता हो और उसका रोज सामान्य तरीके से अभ्यास होता हो तब यदि उसमें थोड़ा हुनर, थोड़ी तकनीक, थोड़ी होशियारी और थोड़े आला दर्जे के संसाधन जुड़ जाएं तो फिर कौन दुनिया में परचम लहराने से रोक सकता है। जिले के देहाती इलाकों में यह दमखम भरा पड़ा है। स्कूल के लिए दो-तीन किलोमीटर पैदल सफर, माही बेकवाटर के करीब बसे गांवों से रोज दो तीन किमी पानी को चीरने की मशक्कत। पहाड़ी इलाकों में रोजमर्रा के काम या गुजारे के लिए हाड़तोड़ मेहनत। एक अच्छा एथलीट, खिलाड़ी, नाविक बनने के लिए इससे ज्यादा मेहनत और तपस्या क्या हो सकती है। दमखम गांव-गांव में भरा पड़ा है, बुधियासिंह जैसे नवोदित एथलीट बनने की क्षमताएं भरी पड़ी हैं लेकिन अफसोस कि खेलों के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने वालों को यह सब दिखता नहीं है। वजह भी साफ है कि इलाका गरीब, गरीबी, पिछड़ेपन का है वरना कोई वैभवशाली इलाके में ये प्रतिभाएं होती तो दुनिया प्रतिभाओं के साथ कदमताल करती दिखती, शाबाशी और वाहवाही लूटने का होड़ दिखती।
जी हां, ये हाल बांसवाड़ा की प्रतिभाओं के हैं, जो सरकार की बेरुखी के चलते यहीं दम तोड़ रही हैं। हालात यह हैं कि यहां से केवल तीरंदाजी पर सरकारी इनायत से युवा अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे हैं। इसके अलावा खेल और खिलाड़ी दोनों उपेक्षित ही हैं। मौजूदा दौर में जिला मुख्यालय को ही लें, तो यहां खेल स्टेडियम में मौजूद चंद व्यवस्थाओं को छोडकऱ न तो एक भी बड़ा ढंग का खेल मैदान है और न ही खेल छात्रावास सलामत है। ऐसे में जो बच्चे-युवा तैयार हो रहे हैं, वे भी निजी स्तर के प्रयासों से, अन्यथा सरकारी इमदाद के नाम पर यहां खिलाडिय़ों के लिए कुछ दिखलाई नहीं दे रहा है।
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खेल छात्रावास खंडहर, नाम के प्रवेश और वे भी किराये पर कमरे लेकर रह रहे
शहर में रातीतलाई में खेल छात्रावास तो है, लेकिन वह आठ-दस साल से खंडहर होने से इसमें प्रवेशित बच्चे भाड़े पर बाहर रह रहे हैं। नूतन स्कूल के अधीन छात्रावास से इस साल यहां हैंडबॉल के 3 और एथलेटिक्स के 6 यानी केवल 9 बच्चों का प्रवेश हुआ है और वे भी किराए पर कमरे लेकर रह रहे हैं। हॉस्टल में पिछले साल 17 बच्चे थे। एक वक्त था, जब यहां 35-40 बच्चे रहते थे। तब अच्छे बंदोबस्त के बूते बांसवाड़ा हैंडबॉल की टीम राज्य में चैम्पियन भी रही। फिर खिलाडिय़ों का मोहभंग हो गया। अब जब रहने और सुविधाओं का ही ठिकाना तक नहीं, तो अंदाजा लगाना सहज है कि बच्चों को खेलकूद की सुविधाएं किस तरह मिल रही हैं।
खेल मैदान भी नहीं, जो हैं वे बदहाल
शहर के मध्य में बड़ा मैदान कुशलबाग स्कूल का है, लेकिन यह भी नगर परिषद के अधीन आयोजनों-प्रयोजनों के काम ही आ रहा है। खेलों के लिहाज से इस मैदान की बुरी दशा है। इसके अलावा कॉलेज मैदान भी बगैर सार-संभाल के उबड़-खाबड़ और पथरीला है, जहां शौकिया तौर पर ही बच्चे-बड़े कभी कभार खेलते दिखलाई देते हैं।
नौकायन में गुंजाइश
यहां बड़ी गुंजाइश नौकायन की है। माही बांध और आसपास के इलाकों में नौकायन में युवतियों का भी गजब का स्टेमिना है, लेकिन इन्हें प्रशिक्षित करने और आगे लाने के कोई प्रयास नहीं हुए हैं। सरकारी स्तर पर भी साल में एक बार माही महोत्सव के तहत महज मनोरंजन के लिए प्रतिस्पद्र्धाएं होती हैं और उनके भी विजेताओं को बाद में कोई नहीं पूछता।
नाम के काम, लुप्त होने लगी पहचान
अब कहने को यहां क्रिकेट, हॉकी, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, चेस, एथलेटिक्स समेत विभिन्न खेलों और इनके खिलाडिय़ों पर मशक्कत हो रही है। कुछ एसोसिएशन सक्रिय भी हैं, लेकिन सरकार से अपेक्षित मदद और प्रतिभाओं को संवारने के नाम पर कुछ दिखलाई नहीं दे रहा। मार्शल आर्ट, फुटबॉल जैसी कुछ विधाओं में कोशिशें निजी स्तर पर ही हो रही हैं।
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अर्से बाद अब तैराकी में उम्मीद की किरण
माही की गोद में पले-बढ़े तैराकी में सिद्धहस्त बच्चे यहां हजारों की संख्या में है। तैराकी का प्रशिक्षण देकर इनमें कौशल विकसित कर आगे लाने की दिशा में वर्षों बाद अब सरकार की मेहर हुई है। हाल ही सरकार ने टीएडी के जरिए चार करोड़ की लागत का अंतरराष्ट्रीय स्तर का तरणताल बनाने की घोषणा की है। इससे अब भविष्य में बांसवाड़ा से अच्छे तैराक निकलने की उम्मीद जगी है।
कभी बजता था हैंडबॉल में डंका, अब तीरंदाजी पर फोकस
खेल गतिविधियों पर गौर करें तो यहां केवल जनजाति खेल छात्रावास में तीरंदाजी पर ही फोकस है। एक समय था कि राज्य की हैंडबॉल की टीम बांसवाड़ा में बना हुआ करती थी, कारण कि तब बांसवाड़ा से एक से बढकऱ हैंडबॉल के खिलाड़ी थे। चंद वर्षों में सब मटियामेट हो गया। अब हैंडबॉल के खिलाडिय़ों को संवारने के कुछ प्रयास शुरू हुए हैं, लेकिन वे नाकाफी हैं।
इनका कहना है
जिले में खेलों और खिलाडिय़ों के विकास की काफी संभावनाएं हैं। हमने जिला खेल स्टेडियम में बैठक व्यवस्था सुधारने फुटबॉल मैदान बेहतर बनाने, बैडमिंटन कोर्ट के आसपास क्षेत्र विस्तार, खो-खो, हैंडबॉल के मैदान विकसित करने के प्रस्ताव भेजे हुए हैं। नौकायन भी बांसवाड़ा जिले में एक बेहतरीन विधा है। इसके लिए भी प्रयास करेंगे।
धनेश्वर मईड़ा जिला खेल अधिकारी बांसवाड़ा

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