सर्पदंश का शिकार हुई दो वर्षीय बच्ची काया पुत्री गटू कटारा के मामा सुरेश ने बताया कि पातेला गांव में बच्ची घर में खेल रही थी। सुबह तकरीबन साढ़े 10 बजे उसे सर्प से डस लिया। जिस पर बच्ची जोर से रोई। सांप को पास गुजरता देख बच्ची के परिजन उसे तुरंत परतापुर चिकित्सालय ले गए। जहां उपचार के बाद एमजी चिकित्सालय रैफर कर दिया गया। इस दौरान बच्ची की गंभीर हालत को देखते हुए उसे कृत्रिम श्वास (अम्बू बैग के माध्यम से) दी जाती रही।
इमरजेंसी सेवा के दौरान यदि कोई मरीज आता है तो उक्त मरीज को इमरजेंसी ड्यूटी में तैनात चिकित्सक चेक करता है और आवश्यकता पडऩे पर विशेषज्ञ को कॉल करता है। विशेषज्ञ को लेने के लिए अस्पताल से वैन जाती है जो चिकित्सक को निवास से अस्पताल लेकर पहुंचती है और मरीज के उपचार के बाद पुन: चिकित्सक को घर छोडऩे के लिए जाती है। यह व्यवस्था इसलिए है ताकि विशेषज्ञ के द्वारा 10 से 15 मिनट में गंभीर मरीज को उपचार मिल सके। और उक्त मामले में भी इमरजेंसी में तैनात चिकित्सक ने शिशुरोग विशेषज्ञ को कॉल की। लेकिन शिशुरोग विशेषज्ञ तकरीबन तीन बजे वार्ड में पहुंचे और उदयपुर रैफर करने की सलाह दी।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. रंजना चरपोटा ने बताया कि उनके पास तकरीबन पौने तीन बजे सूचना आई। जिसके बाद वो वाहन से तीन बजकर पांच मिनट पर अस्पताल पहुंच गई। इससे पूर्व अन्य चिकित्सक के पास कॉल गई थी। वहीं, एक शिशु रोग चिकित्सक एसएनसीयू वार्ड में उपस्थित थे। यदि स्टाफ के द्वारा सही गाइड किया जाता तो एसएनसीयू वार्ड से ही चिकित्सक पहुंच बच्ची को तुरंत देख लेते। हालांकि बच्ची को परतापुर से ही सही उपचार दिया गया था। लेकिन बच्ची की हालत गंभीर थी और बेहतर उपचार के लिए उसे उदयपुर रैफर कर दिया गया। लेकिन परिजन उसे शाम तकरीबन 6 बजे घर ले गए।
बच्ची के मामा सुरेश ने बताया कि बच्ची को परतापुर में उपचार मिला लेकिन महात्मा गांधी चिकित्सालय में सही उपचार नहीं मिला। भर्ती होने के एक घंटे बाद वार्ड में चिकित्सक पहुंचे और चेक करने के बाद उदयपुर रैफर की बात कही। चिकित्सक के कहने के बाद परिजन उसे उदयपुर ले जाने की बजाय घर ले गए। देर शाम तक भी बच्ची की हालत गंभीर बनी रही।