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बाराबंकी

सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की इकलौती दरगाह, जहां इसबार भी होली में मची सतरंगी रंगो की धूम

आपसी भाईचारे की अनोखी मिसाल…

बाराबंकीMar 20, 2019 / 01:44 pm

नितिन श्रीवास्तव

Dewa Sharif Haji Waris Ali Shah Baba Mazar holi celebration

सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की इकलौती दरगाह, जहां इसबार भी होली में मची सतरंगी रंगो की धूम

बाराबंकी. देवा शरीफ स्थित सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह शायद देश की पहली दरगाह होगी जहां सभी धर्मों के लोग मिलकर होली के सूफियाना रंगों में सराबोर होते हैं। जो रब है वही राम का संदेश पूरी दुनिया को देने वाले सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की बाराबंकी की मजार पर इसबार भी आपसी सौहार्द के लिए होली में गुलाल की धूम मची। हिंदू-मुस्लिम एक साथ रंग और गुलाल में डूब गए। बाराबंकी का यही बागी और सूफियाना मिजाज होली को दूसरी जगहों से अलग कर देता है।

देवा शरीफ की बेमिसाल होली

बाराबंकी की हाजी वारिस अली शाह मजार परिसर में सतरंगी रंगों के साथ खेली जाने वाली फूलों की होली अपने आप में बेमिसाल है। यहां होली में केवल गुलाब के फूल और गुलाल से ही होली खेलने की परंपरा है। कुंतलों फूलों की पांखुड़ियों और गुलाल से यहां हिंदू मुस्लिम ने मिलकर होली खेली। मजार के कौमी एकता गेट पर पुष्प के साथ चाचर का जुलूस निकाला गया और मजार परिसर तक पहुंचा। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के चाहने वाले सभी धर्म के लोग थे। इसलिए हाजी साहब हर वर्ग के त्योहारों में बराबर भागीदारी करते हैं। वह अपने हिंदू शिष्यों के साथ होली खेल कर सूफी पंरपरा का इजहार करते थे। इसीलिए उनके निधन के बाद आज भी यह परंपरा आज जारी है। यहां की होली में उत्सव की कमान दशकों से शहजादे आलम वारसी संभाल रहे हैं।

देश को आपसी सौहार्द की जरूरत

होली उत्सव आयोजन से जुड़े और वारसी देवा होली समिति के अध्यक्ष शहजादे आलम वारसी के मुताबिक बुर्जग बताते थे कि सूफी संत के जिंदा रहने के दौरान ही उनके भक्त उनको होली के दिन गुलाल और गुलाब के फूल भेंट करने के लिए आते थे। इस दौरान ही उनके साथ श्रद्धालु होली खेलते थे। वहीं मजार के शिष्यों की मानें तो आज भले ही हाजी साहब दुनिया में नहीं हैं पर देश को आज भी आपसी सौहार्द की बेहद जरूरत है। इसको बनाए रखने के लिए ही वह अपने साथियों के साथ यह जश्न मनाते हैं।

दिल्ली से आते हैं हर साल

दिल्ली से हर साल यहां होली मनाने आने वाले सरदारमंजीत सिंह ने बताया कि यहां की होली साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल है। यहां हर मजहब का आदमी मिलजुलकर होली खेलता है। उन्होंने बताया कि पहले वह होली नहीं खेलते थे और पिछले 30 साल से दिल्ली से यहां आकर केवल लोगों को होली खेलते देखते थे। लेकिन अब वह भी यहां लोगों के साथ जमकर होली खेलते हैं।

भाईचारे का संदेश

वहीं हाजी वारिस अली शाह की मजार पर पहुंचे कांग्रेस के राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया ने बताया कि यहां की होली आपसी भाईचारा का संदेश देती है। यहां की होली इन लोगों के लिए करारा जवाब है जो समाज को बांटने का काम करते हैं। यह देश का पहला ऐसा पवित्र स्थान है जहां सभी धर्म के लोग आते हैं और पूरे हिंदुस्तान के लिए शांति और सद्भाव का संदेश लेकर यहां से जाते हैं।

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