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बाराबंकी

बाढ़ से बचाव की परियोजनाओं में सामने आया बड़ा खेल, ग्रामीणों ने लगाए गंभीर आरोप

तराई इलाके को बाढ़ से बचाने के लिए हर साल सरकार द्वारा लागू की गई करोड़ों की योजनाओं पर काम शुरू होता है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के चलते यह काम बाढ़ आने से पहले पूरा नहीं हो पाता है।

बाराबंकीJun 07, 2021 / 12:33 pm

नितिन श्रीवास्तव

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बाराबंकी. तराई इलाके को बाढ़ से बचाने के लिए हर साल सरकार द्वारा लागू की गई करोड़ों की योजनाओं पर काम शुरू होता है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के चलते यह काम बाढ़ आने से पहले पूरा नहीं हो पाता है। इसकी वजह से सरकार की तरफ से ग्रामाणों को बाढ़ के कहर से बचाने के लिए खर्च की गई रकम बर्बाद जाती है और वहीं लोगों को बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है। बाराबंकी जिले का नजारा इस बार भी कुछ ऐसा ही है। अब जब नदियों का जलस्तर बढ़ने लगा तो काम की रफ्तार बढ़ाई जा रही है। ग्रामीणों की मानें तो काम के नाम पर अधिकारी केवल खाना पूर्ति कर रहे है। ग्रामीणों की अगर मानें तो उनके गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए जो जियो और ईसी बैग मिट्टी भरवाकर नदी डलवाए जा रहे हैं, वह काफी नहीं हैं। क्योंकि उसकी ऊंचाई कम है और बाढ़ आने पर पानी गांव में घुसेगा और पूरा गांव नदी में तटकर समा जाएगा। ऐसे में इन बैग को डलवाने का क्या फायदा। ऐसे में ग्रामीणों ने शंका जताई कि इस काम में कोई बड़ा घोटाला भी हो सकता है। क्योंकि जियो बैग महंगे होते हैं और ईसी बैग सस्ते। इसीलिए जियो बैग की जगह ईसी बैग का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है, जिससे सरकार द्वारा जारी बजट की बंदरबांट हो सके। क्योंकि नदी में कितने बैग पड़े, इसको कोई देखने वाला भी नहीं।
कटान रोकने के लिए हो रहा काम

बाराबंकी जिले में घाघरा नदी की बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले गांवों में तेलवारी, गोबरहा और कहारपुरवा शामिल हैं। इन गावों में पिछले साल भी नदी ने काफी तबाही मचाई थी। इसीलिए इस बार बाढ़ के कहर से इन गांवों को बचाने के लिए सरकार की तीन परियोजनाएं चल रही हैं। दरअसल अगर नदी की कटान को नहीं रोका गया तो इस बार ये तीनों गांव घाघरा नदी में समा जाएंगे। इसी को लेकर यहां गांव की तरफ कटान को रोकने के लिए नदी के किनारों पर ईसी और जियो बैग डलवाए जा रहे हैं। लेकिन यहां के ग्रामीणों का आरोप है कि नदी में ईसी बैग ज्यादा डलवाए जा रहे हैं, जबकि जियो बैग का इस्तेमाल कम हो रहा है। इसके साथ ही ग्रमीणों ने बताया कि जो बैग नदी में डलवाए गए हैं उनकी ऊंचाई कम है और बाढ़ आने पर पानी गांव में घुसेगा और पूरा गांव नदी में तटकर समा जाएगा। ऐसे में इन बैग को डलवाने का क्या फायदा। वहीं दूसरी तरफ काम की रफ्तार भी काफी सुस्त है। ग्रामीणों के मुताबिक अभी काफी काम बचा है। ऐसे में ग्रामीणों ने शंका जताई कि इस काम में कोई बड़ा घोटाला भी हो सकता है। क्योंकि जियो बैग महंगे होते हैं और ईसी बैग सस्ते। इसीलिए जियो बैग की जगह ईसी बैग का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है, जिससे सरकार द्वारा जारी बजट की बंदरबांट हो सके। क्योंकि नदी में कितने बैग पड़े, इसको कोई देखने वाला भी नहीं।
ऐसे कैसे रुकेगी कटान

ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ से रोकने के लिए जो कार्य विभाग द्वारा कराए जा रहे हैं, वह काफी नहीं हैं। क्योंकि इस हालत में नदी की बाढ़ का पानी गांव आने से नहीं रोका जा सकेगा। क्योंकि जो बैग मिट्टी भरकर नदी में फेंके गए हैं, उनकी ऊंचाई काफी कम है। वहां पर और बैग डलवाकर उसकी ऊंचाई और बढ़ाई जानी चाहिये।
नहीं हो रही कोई लापरवाही

वहीं इस पर बाढ़ कार्य खण्ड बाराबंकी के अधिशासी अभियंता शशि कान्त सिंह ने कहा कि नदी के लेवल के हिसाब से ईसी और जियो बैग का इस्तेमाल किया जाता है। ग्रमीणों की शिकायत को उन्होंने खारिज करते हुए कहा कि हमारी प्राथमिकता गांव को कटान से बचाना है। इसके लिए लगातार काम जारी है। उसमें किसी तरह से कोई लापरवाही नहीं की जा रही है।

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