किशनगंज में भी लोगों ने वही पीड़ा व्यक्त की। स्थानीय निवासी मदनलाल शाक्यवाल और धर्मवीर चौधरी ने बताया कि हाथी जलोद में एनीकट बनाया, लेकिन उसका काम भी अधूरा पड़ा है। गुस्साए लोगों का कहना था कि उपखंड मुख्यालय किशनगंज है और जनसंख्या में भी ज्यादा है, लेकिन ‘अपनोंÓ को खुश करने के लिए नाहरगढ़ क्षेत्र में आईटीआई और महाविद्यालय ले गए। उप जिला अस्पताल भी लवाड़ा में खोलने जा रहे हैं। किशनगंज से नाहरगढ़, केलवाड़ा के बाद शाहबाद और यहां से कस्बा थाना राजस्थान की अंतिम सीमा है।
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जब धड़कन ऊंची-नीची होती है तो…
बारां की आबादी करीब 15 लाख है, लेकिन यहां कॉर्डियोलोजिस्ट और नेफ्र ोलोजिस्ट ही नहीं है। हेमंतराम खींची ने शायराना अंदाज में दिल का दुख बयां कर दिया। बोले, दिल की सुनने वाला कोई नहीं है, जब धड़कन ऊंची-नीची होती है तो झालावाड़ और कोटा जाना पड़ता है। पास ही खड़े युवक पुरुषोत्तम भी नहीं चूके। बोले, शर्म की बात है कि जिला अस्पताल होने के बावजूद 100 किलोमीटर से ज्यादा दूरी नापनी पड़ रही है। ऐसे हालात में चिरंजीवी योजना का ढिंढोरा पीटें क्या? केलवाड़ा के हरीशंकर कण्डीरा ने भी कहा, सरकार की योजनाएं बढिय़ा हैं, लेकिन यहां सुविधा हो तो बात बने।
ये कैसा उपखंड हेडक्वार्टर…
पेट्रोल पंप के लिए 10 किमी. जा रहे : शाहबाद भले ही उपखंड हेडक्वार्टर हो, लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां ज्यादा कुछ नहीं है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि डीजल-पेट्रोल के लिए 10 किलोमीटर दूर देवरी या फिर 25 किलोमीटर दूर चमरानिया जाना पड़ रहा है।
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रोजगार के नाम पर केवल नरेगा : संपूर्ण विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण एरिया में है। यहां दुकान के अलावा नरेगा ही रोजगार का मुख्य साधन है। ऐसे में पढ़े-लिखे युवा यहां से पलायन कर रहे हैं। न औद्योगिक क्षेत्र और न ही रोजगार सृजन के तकनीकी साधन।
अंता : एनटीपीसी है पर बिजली उत्पादन ठप
बारां-कोटा बाइपास पर अंता विधानसभा क्षेत्र…कुछ समृद्ध नजर आया। कोटा से केवल 50 किलोमीटर दूरी का लाभ भी इसे मिल रहा है। बाइपास से जैसे ही अंदर की तरफ घूमे और कुछ आगे बढ़े तो एनटीपीसी पावर प्लांट पर नजर पड़ी। गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मियों ने आगे नहीं जाने दिया तो बायीं और अंता के मेन मार्केट की ओर घूमे। उत्सकुता हुई कि प्लांट से क्षेत्र को क्या फायदा मिल रहा है। मस्जिद के बाद कार रोकी तो मोबाइल की दुकान पर बैठे मोहम्मद इरशाद से पता चला कि गैस महंगी होने के कारण 419 मेगावाट क्षमता के प्लांट से बिजली उत्पादन रोक दिया है। इससे स्थानीय लोगों के कारोबार पर भी असर पड़ा। प्लांट में काम करने वाले कुछ मजदूर अब चाय की थड़ी खोलकर गुजार कर रहे हैं। कुछ आगे उप जिला अस्पताल पहुंचा तो यहां अव्यवस्थित प्रबंधन जिम्मेदारों के काम की पोल खोलने के लिए काफी था। पत्नी के इलाज के लिए आए मोहनलाल मालव बोले, सामने कुछ मेडिकल संचालकों के यहां चिकित्सक बैठते हैं। वहीं से इनका व्यापार चलता है। खैर, दो घंटे उसी एरिया में घूमते हुए वापस बाइपास का रास्ता पकड़ा।