भूली: फ्री…फ्री…फ्री… ये चुनाव आने पर पार्टियों को क्या फ्री फोबिया हो जाता..? फूली: पता नहीं यार… जो भी हो हमें तो फायदा ही है। भूली: खाळ बोट पडग़ा, चालगी काई… फूली : चालंगा न, बोट तो देणो ही देणो छ:..
भूली : किख ताई देगी.. फूली : या म्हूं खामी बताऊं, म्हारो बोट छ: कोई न भी द्यू… भूली : ठीक छ: बोट तो थ्हारो ही छ:.. पण कोई न भी मत दे दीज्ये, सोच बिचार कर अस्या नेता ने दीजे जो जीतबा क
पाछ: भी आपणी बात सुण .. गलत मनख जीत ग्यो तो पूरे पांच साल दुख देखणो पड़ ज्याग्यो… फूली : या बात तो थन्ह चौखी खी, म्हारां तबादला क लेख म्हरां आदमी ने पाछली बार एमएलए के घणा चक्कर
काट््या, आखिर पिसा लेर ही मान्यो..अस्यां लोभी मनख को बोट ही न देणो छो, अबक पूरो ध्यान राखूंगी… भूली : काई ध्यान राखगी, सारा एक जस्या छ:, जीतबा क पाछ: कोई पिसा ल्या बना काम न करबा हाळा.. चुणाव में अतनो खरचो कर छ:, फेर आपण सू ही वसूल छ: यह नेता लोग..
फूली : तो काई करू, कोई न भी बोट न द्यू.. ? भूली: अर न बोट न देबो तो और भी बड़ो गलत काम हो जावगो… बोट तो जरूर देंगा.. आपणी ओर सू पूरो सोच-समझ देंगा.. आग कुण कस्यो कढ़ आपणी किस्मत…
फूली : चौखी अब चाला… घरहाळा बाट देखरया होवेगा…थ्हारो भी तो घरहाळो आग्यो होवेगो… भूली : न म्हारां वाकी तो चुणाव म ड्यूटी लाग री छ: अब चुणाव करा र ही आवगा… पण आज बबलू का होमवर्क करानो छ: म्हूं भी जाऊ छू:
फूली : हां.. काळ की काळ देखी जाओगीे..