देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरण गतः।। ये करें उपाय 1. संतानहीन जातकों को रात्रिकाल में भगवान श्रीकृष्ण के मन्दिर में जाकर तांबे से बनी एक बांसुरी और एक मोर पंख भगवान के श्री चरणों में अर्पित कर गुप्तता रखते हुए संतान सुख की प्रार्थना करें।
जन्माष्टमी के दिन प्रातः स्नानादि के उपरांत श्रीकृष्ण भगवान के लिए व्रत करने व भक्ति करने का संकल्प लेना चाहिए। तदोपरांत चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर कलश पर आम के पत्ते या नारियल स्थापित करें। स्वास्तिक का चिन्ह भी बनायें। पूर्व या उत्तर की ओर और मुंह करके बैठें, एक थाली में कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी, दल, मौली, कलावा रख लें। खोये का प्रसाद, ऋतु फल, माखन मिश्री ले लें और चौकी के दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्जवलित करें। इसके पश्चात् वासुदेव-देवकी एवं नन्द-यशोदा की पूजा अर्चना करें। इसके पश्चात् दिन मे व्रत रखने के उपरान्त रात्रि 8:00 बजे पुनः पूजा आरम्भ करे और एक खीरे को काटकर उसमें श्रीकृष्ण का विग्रह रूप स्थापित करें। इसके बाद रात्रि 10:00 बजे विग्रह अर्थात लड्डू गोपाल को खीरे से निकाल कर पंचामृत से उसका अभिषेक करें। पंचामृत में विद्यमान दूध से वंशवृद्धि, दही से स्वास्थ्य, घी से समृद्धि, शहद से मधुरता, बूरा से परोपकार की भावना एवं गंगा जल से भक्ति की भावना प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण को पंचामृत का अभिषेक शंख से करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है। इसके बाद तीसरे चरण की पूजा रात्रि 12:00 बजे आरम्भ करें क्योंकि श्रीकृष्ण जी का इस धरती पर प्राकट्य रात्रि 12:00 बजे हुआ था। इसके बाद इस समय भगवान श्रीकृष्ण का निराजन 11 अथवा 21 बत्तियों के दीपक से करें।