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बरेली

तीन साल पाकिस्तानी जेल में गुजारकर, बेकसूर यशपाल वापस लौटा भी तो देश के सिस्टम से हार गया…

पढ़ें बेकसूर यशपाल की दर्दभरी दास्तां, जिसे पढ़कर आप भी अपने आंसू रोक नहीं पाएंगे।

बरेलीDec 14, 2017 / 02:57 pm

suchita mishra

yashpal

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बरेली। चार साल पहले फरीदपुर तहसील के पढेरा गांव में जश्न का माहौल था क्योंकि गांव का बेटा यशपाल पड़ोसी देश पाकिस्तान की जेल से पूरे तीन साल 39 दिन बाद रिहा होकर अपने गांव लौटा था। यशपाल के गांव पहुंचने पर उसका स्वागत हुआ था और जिला प्रशासन ने भी उसे 20 बीघा जमीन देने का भरोसा दिलाया था।
समय गुजरता गया और यशपाल का परिवार सरकारी वायदे के पूरा होने का इंतजार करता रहा, लेकिन प्रशासन की ओर से जो घोषणा की गई थी, उसका फायदा परिवार को नहीं मिला। वहीं पाकिस्तान की जेल में यशपाल पर हुए अत्याचारों ने उसकी मानसिक स्थिति को बिगाड़ दिया जो आज तक ठीक नहीं हो सकी है। उसका इलाज मानसिक अस्पताल में चल रहा है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि प्रशासन द्वारा मानवाधिकार आयोग को भेजी गई रिपोर्ट में उसकी मदद के सारे रास्ते बंद हो गए।
रिहाई में जागर संस्था ने की थी मदद
समाजसेवी संस्था जागर चलाने वाले प्रदीप कुमार के प्रयास से ही यशपाल 10 जुलाई 2013 को पाकिस्तान की कोट लखपत जेल से रिहा हुआ था, लेकिन जेल से रिहा होने के बाद यशपाल की मानसिक हालत बिगड़ गई।यशपाल के इलाज और मदद के लिए प्रदीप कुमार ने मानवाधिकार आयोग से अपील की थी। इस पर आयोग ने बरेली के जिला प्रशासन से यशपाल के बारे में रिपोर्ट मांगी थी। प्रदीप कुमार ने बताया कि 26 अक्टूबर 2017 को मानवाधिकार आयोग को भेजी गई रिपोर्ट में जिला प्रशासन ने आयोग को बताया कि यशपाल शारीरिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ्य है और उसका किसी भी अस्पताल में इलाज नहीं चल रहा है। इस पर मानवाधिकार आयोग ने प्रदीप कुमार की अपील को खारिज कर दिया। प्रदीप का कहना है कि वे एक बार फिर से मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाएंगे।
भटक कर पहुंचा था पाकिस्तान
यशपाल के पिता वीरपाल मजदूरी करते हैं और उनके पांच बच्चों में यशपाल सबसे बड़ा है। 2009 में वो गांव के अन्य लोगों के साथ दिल्ली मज़दूरी करने गया था, लेकिन मजदूरी न मिलने पर वो रिक्शा चलाने लगा। एक दिन घर जाने के लिए वो दिल्ली में किसी गलत ट्रेन में बैठ गया और भटककर पाकिस्तान के बॉर्डर पहुंच गया। इसके कारण सीमा उल्लंघन के मामले में उसे पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में डाल दिया गया। जब इसकी जानकारी जागर संस्था के प्रदीप कुमार को हुई तो उन्होंने यशपाल को रिहा करने के लिए मुहिम शुरू की और यशपाल को तीन साल 39 दिन बाद जेल से रिहा कर दिया गया। उसे 10 जुलाई 2013 को अटारी बॉर्डर पर भारतीय अफसरों को सौंप दिया गया। जब यशपाल गांव पहुंचा तो प्रशासन के अफसर भी गांव पहुंचे और यशपाल के परिवार को 20 बीघा जमीन देने की बात कही लेकिन वो वायदा आज तक पूरा नहीं हुआ।
जस से तस हैं यशपाल के हालात
यशपाल का इलाज इस समय मानसिक अस्पताल की ओपीडी में चल रहा है।फिलहाल मानवाधिकार आयोग को भेजी रिपोर्ट में उसकी मदद के रास्ते बंद हो गए हैं। ऐसे में यशपाल के पिता उसके जल्द ठीक होने की कामना कर रहे हैं।

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