रात दो बजे निकलती है टोली पुराने समय में जब मोबाइल फोन और अलार्म घड़ियां नहीं होती थी तो सहरी के लिए लोगों को उठाने के लिए ढोल का ही प्रयोग होता था। अब भले ही जमाना बदल गया हो लेकिन कुछ लोगों के कारण अब भी ये परम्परा जिन्दा है। लोगों की टोलियां रात में दो बजे निकलती है और इलाके में ढोल बजा कर रोजेदारों को जगाते हैं। ये लोग मोहल्ले के हर घर के सामने खड़े होकर ढोल बजाते हैं और रोजेदारों से सहरी के लिए उठने को कहते हैं।
दिन में करते हैं दूसरा काम ऐसा करने के लिए इन लोगो को कोई मेहनताना नही मिलता यह इसे समाज सेवा के तौर पर करते है। कुछ लोग ईद की वजह से खुश होकर इन्हे बख्शीश ज़रूर देते हैं।यह लोग दिन में अपना काम करते है रात में लोगो को सहरी में जगाने का काम करते हैं। दरगाह आला हजरत से जुड़े नासिर कुरैशी ने बताया कि ये परम्परा सैकड़ों साल पुरानी है। आधुनिक युग में पहले किले की शाही जामा मस्जिद के पास पटाखे चलाकर रोजेदारों को सहरी के लिए जगाया जाता था लेकिन अब हूटर बजाया जाता है। इसके साथ ही मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ढोल जा कर भी कुछ लोग रोजेदारों को जगाने का काम करते हैं।
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