प्रथम दिन जिस प्रकार देवी जी की आराधना की गई उसी प्रकार नवमी की रात्रि में भी पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। पूजन में आसन आपका अपना ही होना चाहिए किसी दूसरे का प्रयोग क्या हुआ आसन प्रयोग नहीं करना चाहिए। जितनी देर तक आप का पूजन हवन चले इतनी देर तक निरंतर एक दीपक की ज्योति प्रकाशमान रहनी चाहिए। क्योकि देवताओं का निवास जल में सदैव रहता है इसलिए एक जल से परिपूर्ण पात्र भी रहना चाहिए, एक सुगंधित धूप प्रज्वलित रहनी चाहिए, आवाहन के लिए कुछ पुष्प और अक्षत होने चाहिए इसे पंपोपचार पूजा कहते हैं। आप अपनी इच्छा अनुसार इसे षोडशोपचार भी कर सकते हैं अर्थात 16 सामग्रियों से देवी जी की आराधना और पूजन।
आपने अपने गुरु से जो भी मंत्र लिया हो उसी मंत्र के अंत में स्वाहा शब्द लगाकर हवन करना चाहिए। अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से हवन करवाना चाहिए। अंत में क्षमा याचना करते हुए अपने पूजा-पाठ को संपन्न करें और अपने अनुष्ठान की सिद्धियों को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हों।