पौराणिक कथा के अनुसार जब सनद कुमारों ने महादेव से उनसे श्रावण महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योग शक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण लिया था, अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती रूप में हिमालय राज के घर में पुत्री रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के श्रावण महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद से ही महादेव के लिए श्रावण का महीना विशेष प्रिय हो गया। इस माह पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र विद्यमान रहता है। इसी कारण इस माह का नाम श्रावण पड़ा।
शिव की प्रसन्नता के लिए ऐसे करें सोमवार का व्रत
श्रावण मास के सोमवार में शिव जी के व्रत एवं पूजा का विशेष विधान एवं महत्व है। शिव जी के ये व्रत शुभ फलदायी होते हैं। इस व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। इस व्रत एवं पूजन में शिव व माता पार्वती का ध्यान कर शिव का पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुये पूजन करना चाहिए। सावन के प्रत्येक सोमवार को श्री गणेश जी, शिव जी, पार्वती जी तथा नंदी की पूजा करने का विधान है। शिव जी की पूजा में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्ब पत्र, दूर्वा, आक, धतूरा, कमलकट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप, दक्षिणा सहित पूजा करने का विधान है। साथ ही कपूर से आरती करके भजन कीर्तन और रात्रि जागरण भी करना चाहिए। पूजन के पश्चात् रूद्राभिषेक कराना चाहिए। ऐसा करने से भोले भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होकर सभी मनोकामनायें पूर्ण करते हैं। सोमवार का व्रत करने से पुत्र, धन, विद्या आदि मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
शिव के इस अत्याधिक प्रिय श्रावण मास में महामृत्युंजय मंत्र, शिवसहस्त्रनाम, रूद्राभिषेक, शिवमहिम्न स्त्रोेत, महामृत्युंजय सहस्त्रनाम आदि मंत्रों का व्यक्ति जितना अधिक जाप कर सके उतना श्रेष्ठ रहता है। स्कन्द पुराण के अनुसार प्रत्येक दिन एक अध्याय का पाठ करना चाहिए। यह माह मनोकामनाओं का इच्छित फल प्रदान करने वाला है। नियमपूर्वक शिव पर बिल्ब पत्र प्रतिदिन निश्चित संख्या (5, 11, 21, 51, 108) में तथा अर्क पुष्प चढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए। इस माह में रूद्राष्टाध्यायी पाठ द्वारा शिव का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए तथा रूद्रीपाठ द्वारा सहस्त्र धारा से अभिषेक करना चाहिए। इस माह में मंत्रों षड्अक्षर शिव मंत्र “ऊँ नमः शिवाय” का पुनःश्चरण भी अति उत्तम है, इस माह में बिल्बवृक्ष तथा कल्पवृक्ष का भी पूजन करना उत्तम रहता है।