तोड़ा सपा का मजबूत किला
भाजपा नेता हर्षवर्धन आर्या के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी थी उन्हें सपा के मजबूत किले को ध्वस्त करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस सीट पर 1996 से लगातार सपा का ही कब्जा था। भाजपा यहाँ अंतिम बार 1991 में चुनाव जीती थी। इस बार भी यहाँ से सैफई परिवार के धर्मेंद्र यादव चुनाव मैदान में थे और सभी राजनीतिक पंडित यहाँ पर भाजपा की जीत मुश्किल बता रहे थे लेकिन हर्षवर्धन आर्य ने बूथ लेबल तक कड़ी मेहनत कर और चुनाव का बेहतरीन प्रबंधन किया जिसके कारण भाजपा प्रत्याशी संघमित्रा मौर्य ने यहाँ से जीत दर्ज की।
मंडल में सबसे बड़ी जीत दिलाई
दुर्विजय सिंह शाक्य को शाजहांपुर सीट की जिम्मेदारी दी गई थी और उन्होंने इस सीट पर भाजपा को मंडल की सबसे बड़ी जीत दिलाने का कार्य किया। यहाँ से भाजपा प्रत्याशी अरुण सागर ने जीत दर्ज की। यहाँ पर भाजपा ने केंद्रीय मंत्री रही कृष्णा राज का टिकट काट कर अरुण सागर को प्रत्याशी बनाया था। लोग अरुण सागर को कमजोर प्रत्याशी बता रहे थे लेकिन दुर्विजय सिंह शाक्य के करिश्मे के कारण भाजपा ने यहाँ पर मंडल की सबसे बड़ी जीत हासिल की।
पीलीभीत से दोबारा सांसद बने वरुण संतोष गंगवार के करीबी नेताओं में एक गुलशन आनंद को पीलीभीत भेजा गया था। पीलीभीत से इस बार वरुण गांधी चुनाव मैदान में थे। शुरुआत में स्थानीय भाजपा नेताओं ने बाहरी प्रत्याशी का विरोध क्र रहे थे लेकिन गुलशन आनंद ने संगठन को दुरुस्त किया वरुण गांधी ने जनसम्पर्क कर जनता की नाराजगी दूर की जिसका फल यह हुआ कि वरुण गांधी ने यहाँ से शानदार जीत दर्ज की।
आठवीं बार संतोष को चुना बरेली ने संतोष गंगवार को जिताने के लिए सुरेश गंगवार और संजीव अग्रवाल को लगाया गया था। सुरेश गंगवार को बरेली लोकसभा की जिम्मेदारी दी गई थी। मैदान में गठबंधन की तरफ से भी कुर्मी प्रत्याशी होने के कारण कुर्मी वोट बिखरने का अंदेशा था ऐसे में सुरेश गंगवार ने बेहतरीन चुनाव प्रबंधन किया और कुर्मी वोट बिखरने नहीं दिया। संजीव अग्रवाल के जिम्मे संतोष गंगवार के चुनाव प्रबंधन का कार्य था उन्होंने जनता के बीच जाकर लोगों की नाराजगी दूर की और संतोष गंगवार ने यहां से आठवीं बार जीत दर्ज की।
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