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बाड़मेर

हेमाराम जीतकर भी कई बार गहलोत से हारे….

– यह तकरार नई नहीं, हर बार आमने-सामने

बाड़मेरJul 15, 2020 / 04:59 pm

Ratan Singh Dave

Even after winning Hemaram, he lost to Gehlot many times.

Even after winning Hemaram, he lost to Gehlot many times.

बाड़मेर
हेमाराम और अशोक गहलोत की तकरार नई नहीं है। कांग्रेस के लिए गुड़ामालानी से जीताऊ रहे हेमाराम को हर बार जीत के बाद में तवज्जो नहीं मिलने का खामियाजा भुगतना पड़ा। गहलोत के प्रति उनके गुस्से की वजह भी यही रही है।
वर्ष 1980 और 1985 में हेमाराम गुड़ामालानी से विधायक बने तब कई कद्दावर नेता थे इस कारण हेमाराम का नाम युवाओं में शामिल था लेकिन 1998 में हेमाराम प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम बन गए जब करीब 55 हजार वोटों से उन्होंने गुड़ामालानी से राज्य की रिकार्ड जीत दर्ज की। इतनी बड़ी जीत का रिकार्ड बनाने के बाद हेमाराम को उम्मीद थी कि उनको राज्य मंत्री मण्डल में जगह मिलेगी लेकिन गहलोत सरकार ने उन पर नजरे इनायत नहीं की, इससे हेमाराम खफा हो गए थे। कार्यकाल के अंतिम साल में हेमाराम को परिवार कल्याण राज्यमंत्री बनाया गया। वर्ष 2003 के चुनावों में हेमाराम ने फिर जीत दर्ज की लेकिन भाजपा की सरकार बनी, हेमाराम कांगे्रस से जीतने वाले इकलौते प्रत्याशी ही थे। 2008 में प्रदेश में पुन: कांग्रेस सरकार बनी और हेमाराम ने गुड़ामालानी से जीत दर्ज करवाई। इस दौरान हेमाराम का नाम उप मुख्यमंत्री के नाम के तौर पर सामने आया और सियासी हलकों में यह चर्चा हो गई कि गहलोत के साथ ही हेमाराम शपथ ले सकते है लेकिन हेमाराम को राजस्व मंत्री बनाया गया। इससे हेमाराम चौधरी खुश नहीं थे। फिर भी उन्होंने राजस्व मंत्री के तौर पर संतोष किया लेकिन 2009 में बाड़मेर में रिफाइनरी का विवाद शुरू हो गया। रिफाइनरी बायतु के लीलाळा में लगनी थी और मुआवजे की बात को लेकर किसान अड़ गई। इसमें ऐसी सियासत हुई कि कर्नल सोनाराम चौधरी, मदनकौर, हरीश चौधरी और हेमाराम चौधरी को एक जाजम पर पंचायती करनी थी। इसमें हेमाराम पर राजनीति का आरोप लगते ही वे गुस्सा गए और उन्होंने अपना इस्तीफा लिखकर भेज दिया। हेमाराम का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया और उन्हें मना लिया गया। हेमाराम इसके बाद समझ पाए कि रिफाइनरी पचपदरा स्थानांतरित करने के इस सारे खेल में वे तो केवल मोहरा बन रहे थे। हेमाराम ने 2013 का चुनाव आने से पहले ही कह दिया कि अब वे चुनाव नहीं लड़ेगे और राजनीति से अलग हो जाएंगे। हेमाराम नामांकन से ठीक एक दिन पहले ही अहमदाबाद चले गए। इस दौरान रात को राहुल गांधी ने उन्हें कॉल किया और नामांकन के लिए आना पड़ा। हेमाराम चुनाव लड़े लेकिन हार गए। 2018 के चुनावों से पहले हेमाराम के इकलौते पुत्र का निधन हो गया, उन्होंने चुनाव लडऩे से मना भी किया लेकिन बाद में तैयार किया गया और चुनाव जीत गए।
जीतते ही हार गए…
हेमाराम जैसे ही चुनाव जीते उन्होंने यह मान लिया कि अब उनको मंत्री बनाना तय है लेकिन हेमाराम को मंत्री न बनाकर गहलोत के करीबी हरीश चौधरी राजस्व मंत्री बना दिए गए। ऐसे में हेमाराम जीतते ही मन से हार गए और उन्होंने अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को भेज दिया था, जो स्वीकार नहीं हुआ।
गहलोत-हेमाराम की पटरी बैठी ही नहीं
लगातार जीत और गुड़ामालानी में कांग्रेस का एकमात्र नाम बन रहे हेमाराम चौधरी प्रदेश के मुख्य नेताओं में शुमार होते गए लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हेमाराम को हर बार पहले तरसाया और फिर कुछ दिया। ऐसे में हेमाराम और मुख्यमंत्री गहलोत की तकरार हमेशा चलती रही। सचिन पायलट ने हेमाराम का इसबार हाथ थामा तो वे अब खुलकर सामने आ गए है।
अब आगे क्या होगा?
हेमाराम के सचिन पायलट का हाथ थामने और खुलकर सामने आने के बाद अब हेमाराम के राजनीतिक भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ी है लेकिन खुद हेमाराम यही कहते रहे है कि मैं तो चुनाव लडऩा ही नहीं चाहता था। ये खुद आगे लाते है और फिर इस तरह का व्यवहार करते है। गहलोत पूर्व में भी हेमाराम को नाराज होने के बाद मनाते रहे है लेकिन इस बार हेमाराम ने ज्यादा खुलकर गहलोत पर हमला बोला है, ऐसे में अब दोनों के बीच में समझौते को लेकर राजनीतिक पंडित भी कयास लगाने में असमर्थता जाहिर कर रहे है।लाध्यक्ष फतेहखां ने दी।

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