1971 में सिंध से आया हुनर आज फैशन के रैंप पर
https://www.patrika.com/barmer-news/
Hunar, who came from Sindh in 1971 on the ramp of fashion today
1971 में सिंध से आया हुनर आज फैशन के रैंप पर बाड़मेर . 1971 का युद्ध। सिंध इलाके में बमबारी हो रही थी। बाड़मेर की सरहद के सामने के सिंध के पूरे इलाके के लोगों को भारतीय फौज आवाज दे रही थी कि भागो और भारत में शरण ले लो..। सात साल की मासूम मीरां…। परिवार के पता नहीं किस सदस्य की अंगुली पकड़कर दौड़ रही थी। कितने मील दौड़ी यह भी उसको पता नहीं। सुबह से लेकर रात हो गई तब कहीं सोने को आसरा मिला। दूसरी सुबह हिन्दुस्तान में थी। यही मीरां आज जयपुर-दिल्ली और अन्यत्र फैशन शो में जब ङ्क्षसधी उत्पादों के प्रदर्शन के बाद बुलाई जाती है तो फैशन के रैंप पर उसके कदम उन दिनों की याद में आंखें नम कर जाते हैं। मीरां जैसी सैकड़ों शरणार्थी महिलाएं हैं जो 1971 के युद्ध के बाद भारत आ गईं। यहां उनके परिवारों को चलाना मुश्किल था। इनके पास एक ही हुनर था सिंधी कशीदकारी। इसको यहां स्वयंसेवी संस्थाओं ने संबल देना शुरू किया। नतीजा रहा कि अब यह फैशन के रैम्प तक पहुंच गई है।
2500 से अधिक महिलाओं को रोजगार : जिले में 2500 से अधिक कशीदकारी का काम करने वाली महिलाएं हैं। ये यहां शॉल, साड़ी, सलवार- सूट सहित कई उत्पाद तैयार करती हैं। इन उत्पादों को संस्थाओं ने फैशन के रैम्प तक पहुंचा दिया है। जहां कई देशों की प्रदर्शनियां लगने लगी हैं।
साड़ी और राली बनाने
के हुनर की बढ़ी पहचान
सिंध की इन महिलाओं ने बाड़मेर में राली बनाने का नया हुनर दिया है। जिस राली को यहां सर्दियों से बचाव के लिए तैयार किया जाता था वही राली अब यहां फैशन बन गई है। इसी तरह बाड़मेर में अब यही महिलाएं साड़ी बनाने का हुनर भी सीख गई हैं।
जिदंगी जी ली
&सात साल की उम्र में पाकिस्तान से आई थी। तब तो कुछ नहीं जानती थी लेकिन इस देश में आने के बाद लगा कि अब जिंदगी जी ली है।
– मीरां, पाक विस्थापित
इस हुनर को जिंदा रखें
&संस्थान की ओर से इस हुनर को आगे बढ़ाया गया है लेकिन सरकार भी मनरेगा की तरह इस तरह का कार्य जोड़े ताकि घर बैठे महिलाएं हुनर का कार्य करें और उनको काम के साथ दाम मिलें। – विक्रमसिंह, सचिव, ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान
Home / Barmer / 1971 में सिंध से आया हुनर आज फैशन के रैंप पर