इसने हमारे प्राकृतिक औद्योगिक और सामाजिक वातावरण को बहुत नुकसान पहुचाया है। इसकी बदौलत बाड़मेर जिला जो वातावरण प्रेमी था अब धीरे-धीरे वातावरण नुकसान पहुचाने वाला होता जा रहा है। पिछले एक दशक से खनन की रफ्तार तेजी से बढ़ी है। अवैध खननकर्ताओं ने धरतीमां की गोद को तो खोखला किया ही है बड़े-बड़े पहाड़ों को भी जमीदोज कर दिया। इधर, बढ़ते औद्योगिक विकास के चलते कारखानों से निकलने वाले धुआं ने बालोतरा, जसोल और आसपास के गांवों की हवा में जहर घोल रखा है। रसायनिक पानी को अवैध रूप से लूनी नदी में छोडऩे से यह भी मैली हो चुकी है।
जैविक धरा में रसासनिक का उपयोग- बाड़मेर में जहां खरीफ की बुवाई में जैविक खेती हो रही है तो रबी की बुवाई में रसायनिक खाद का उपयोग। स्थिति यह है कि तय मापदंड से पांच गुना ज्यादा रसायनिक खाद का उपयोग होने से धरती बंजर होने की ओर है। वहीं, सिंचित खेती में पानी का अत्यधिक उपयोग तो घरों में पानी का दुरुपयोग भी हो रहा है। जिस बाड़मेर में पुरखे पानी को घी से कीमती मानते थे, वहां पानी व्यर्थ बह रहा है। वर्तमान में पानी का जल स्तर जिले में तीन सौ फीट की गहराई से नीचे जाकर पांच फीट तक पहुंच गया है।
ओरण के साथ खत्म हो रही वनस्पति- प्रदेश में 19860 वर्ग किलोमीटर में ओरण है जिसमें से बाड़मेर में 2927.86 वर्ग किलोमीटर में ओरण है। फोगेरा, बालेबा, रेडाना (शिव) और ढोक (चौहटन) की ओरण आज भी लोगों को लुभाती है, लेकिन अन्य गांवों में ओरण-गोचर पर हो रहे कब्जे के चलते पेड़-पौधे विलुप्त हो रहे हैं। ओरण-गोचर और बाड़मेर की धरा पर मिलने वाले अश्वगंधा, संतर, गुगल, बेकरिया, मंजल, हाडा आदि वनस्पति है रफ्ता-रफ्ता कम हो रही है।
पर्यावरण के प्रति रहें सचेत- जिले में पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। रसायनिक खादों का प्रयोग खेती के लिए नुकसानदायक है। ओरण-गोचर बचाने के लिए वन्य क्षेत्र बढ़ाने की जरूरत है। पर्यावरण दिवस पर हम बाड़मेर को पर्यावरण प्रेमी क्षेत्र बनाने की पहल करें।- प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक
यह हो सकते हैं काम
साफ-सफाई की योजना बनाएं
पानी का कम उपयोग करें।
बिजली का उपयोग सिमित करें
खनन कम करें
रसायनिक खाद का उपयोग जरूरत के अनुसार करें
फाइल फोटों काम में लिए जा सकते हैं।