आचार्य कवीन्द्रसागरसूरीश्वर व मुनि कल्पतरूसागर की निश्रा में चातुुर्मास के दौरान दैनिक प्रवचन में दादा आर्यरक्षितसूरी की गुणानुराग सभा का आयोजन हुआ। आचार्य श्री ने कहा कि जैनशासन में तत्वत्रयी देव, गुरुऔर धर्म का विशेष स्थान है। भगवान महावीर धर्मतीर्थ की स्थापना किए हुए 2600 वर्ष से अधिक हो गए हैं। उनके बताए मार्ग को जीवंत रखने और पहचान बनाने वाले महापुरुष दादा आर्यरक्षितसूरि है। आज उनकी 939 वीं जन्मतिथि है। आचार्य कवीन्द्रसागरसूरीश्वर ने दादा आर्यरक्षितसूरि के जीवन पर प्रकाश डाला।
इस संसार की सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि हम प्रतिक्षण जीवन को खोते हैं लेकिन इसके बाद भी मृत्यु के बारे में नहीं सोचते। सृष्टि के विधान में जन्म के साथ मृत्यु का अनिवार्य योग निश्चित है। महापुरुषों का कहना है कि मृत्यु की भी उपयोगिता है इसीलिए ईश्वर ने मृत्यु का विधान रचकर प्राणिमात्र पर बड़ा उपकार किया है। मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, उसे टाला नहीं जा सकता है, वह तो अवश्यम्भावी है। काल के आगे सभी बेबस हो जाते हैं, किसी का कोई वश नहीं चलता। साध्वी सुरंजनाश्री की निश्रा में चातुर्मासिक कार्यक्रम के तहत आयोजित ‘क्या करोगे तब, जब प्राण तन से निकले।
बाड़मेर. जसाई स्थित हिंगलाज धाम में शिव महापुराण कथा में स्वामी प्रताप पुरी ने कहा की जिसके हृदय में श्रद्धा होती है वह ईश्वर कृपा अवश्य प्राप्त करता है। मनुष्य जीवन कर्म प्रधान है। बाकी योनियां भोग प्रधान है। मानव जीवन में कर्म करके इसे सफल बनाना हमारे हाथ में है। हमें प्रकृति का भोग त्याग के साथ करना चाहिए।