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खरीफ पर मानसून की मार, रबी में बूंद-बूंद सिंचाई पर दें ध्यान

locationबाड़मेरPublished: Oct 08, 2018 11:52:04 pm

Submitted by:

Dilip dave

पानी की बचत करें, किसान नवीन तकनीक को अपनाएं-बरसात कम होने से भूगर्भ में पानी का स्तर कम होने की आशंका

खरीफ पर मानसून की मार, रबी में बूंद-बूंद सिंचाई पर दें ध्यान

खरीफ पर मानसून की मार, रबी में बूंद-बूंद सिंचाई पर दें ध्यान

बाड़मेर. जिले में इस बार मानसून की मार ने खरीफ की फसल को प्रभावित किया है। किसान एक बारिश का इंंतजार करते रहे और यह इंतजार ही रह गया। एेसे में बाजरा, मूंग, मोठ व ग्वार की फसलें पचास फीसदी क्षेत्रफल में बोई ही नहीं गई। वहीं कम बारिश का असर भूगर्भीय पानी पर भी पड़ेगा। पानी का स्तर नीचे गिर सकता है। एेसे में रबी की बुवाई के दौरान परम्परागत खेती की जगह नवीन तकनीकी से सिंचाई कर किसान लाभान्वित हो सकते हैं। पिछले एक-डेढ़ दशक से जिले में रबी की बुवाई का क्षेत्रफल बढ़ा है, लेकिन नवीन तकनीक अपना कर किसान पानी की बर्बादी को रोक सकते हैं।
जिले में इस बार 26 से 30 जून तक मूसलाधार बारिश हुई तो खेतों मे हल चले। इसके बाद सावन 26 जुलाई से आरम्भ हुआ, लेकिन लगातार 22 दिन तक बारिश नहीं हुई। इसके चलते खड़ी फसलें भी मुरझाने लगी। इस दौरान मानसून फिर से 16 अगस्त से सक्रिय हुआ, लेकिन बाड़मेर जिले में बारिश नहीं हुई। इससे परम्परागत जल स्रोतों में पानी नहीं आया। बारिश के अभाव में सिंचित क्षेत्र में भी जमीनी पानी का स्तर गिरने की आशंका मंडरा रही है। जिले में सामान्य बारिश 277 मिमी होती है जबकि इस बार 127 मिमी ही हुई।

बूंद-बूंद सिंचाई अपनाने की सलाह- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जिले में किसान बूंद-बूंद सिंचाई, फव्वारा पद्धति को अपनाएं तो पानी की समुचित उपयोग हो सकता है। गौरतलब है कि जिले में ओपनवैल, ट्यूबवैल के साथ नर्मदा नहर से सिंचाई होती है। इसमें से नर्मदा नहर से सिंचाई 5.15 फीसदी क्षेत्रफल में है।
तीन लाख हैक्टेयर में रबी की बुवाई

जिले में करीब तीन लाख हैक्टेयर में रबी की बुवाई होती है। इसमें जीरा, इसबगोल, गेहूं, जौ, रायड़ा, तारामीरा, चना, मैथी आदि प्रमुख फसलें हैं। जीरा और ईसबगोल तो बाड़मेर का विश्व प्रसिद्ध है।
बूंद-बूंद पद्धति को अपनाएं- किसान बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को अपनाएं। इससे पानी की बचत होगी तो फसलों को भी फायदा मिलेगा। इस बार खरीफ की बुवाई कम होने से अकाल जैसी स्थिति है। एेसे में पानी की बचत बेहद जरूरी है। – डॉ.प्रदीप पगारिया, कृषि अधिकारी, कृषि विज्ञान केन्द्र गुड़ामालानी

यों बढ़ा रबी का आंकड़ा

वर्ष क्षेत्रफल हैक्टेयर
1990-91 50,000

1991-92 53,000
1992-93 58,000

1993-94 74,000
1996-97 1,30,000

2001-02 1,50,000
2005-06 2,00,000

2013-14 2,40,000
2014-15 2,50,000

2015-16 2,85,000
2016-17 3,12,000

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