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बाड़मेर

जननी जणै तो एड़ो जण के दाता के शूर, नीतर रहजे बांझणी मती गमाजे नूर…

गांव में गमगीन माहौल तो देश के लिए लाडले के शहीद होने का गौरव भी-दिन बंद रहा बाजार, परिजन का रो-रो कर बुरा हाल

बाड़मेरSep 30, 2019 / 07:33 pm

Mahendra Trivedi

Nayak Rajendrasingh became a martyr

Nayak Rajendrasingh became a martyr

मोहनगढ़ (जैसलमेर). रेत के समंदर में नहर के पास 9 हजार की आबादी वाले मोहनगढ़ गांव की मिट्टी में रविवार को गम के साथ गौरव दिखाई दिया। जिस माटी में राजेन्द्र खेला, कूदा, अपने पैरों खड़ा हुआ, जीवन के मधुर सपने देखे… आज उसी की पार्थिव देह का इंतजार करते हुए गांव के हर बड़े-बुजुर्ग, छोटे की आंख नम है। एक बिना छत के पक्के मकान के बाहर फिजां में छाई खामोशी में ग्रामीणों की भीड़ शून्य को निहारती दिखाई दी।
जब कोई सन्नाटे को चीरती चीख निकलती तो हर किसी का दिल रोने लगता और सजल आंखें ईश्वर से यही सवाल करतीं कि ये क्या हो गया ? सेना में नायक राजेन्द्रसिंह जब ड्यूटी पर जा रहा था तो यह भरोसा दिलाकर गया था कि वापिस आकर सबसे पहले मकान की छत को सही करवाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शहीद की शहादत से गमगीन मोहनगढ़ कस्बे में पूरे दिन बाजार बंद रहा। परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया।
जिस पोते को गोद में खिलाया और उसी के दुनिया से असमय विदा होने के बारे में सुन 85 वर्षीय दादी ज्वाराकंवर बीमार हो गई। गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ के सपूत नायक राजेन्द्रसिंह शहीद हो गए थे। राजेन्द्रसिंह के शहीद होने की जानकारी शनिवार शाम को परिजन को मिली। रात भर ग्रामीण सो नहीं पाए। रविवार सुबह से ग्रामीण शहीद के घर पहुंचने शुरू हो गए। आसपास के गांवों से भी लोग मोहनगढ़ पहुंचना शुरू हो गए।
2013 में सेना में चयन-

शहीद राजेन्द्र सिंह का जन्म 24 दिसम्बर 1992 को हुआ था। घर में बड़ा पुत्र होने के कारण माता-पिता ने बड़े लाड- प्यार से पाला था। बारहवीं तक पढऩे के बाद 1 जनवरी 2013 को राजेन्द्रसिंह का आर्मी में चयन हुआ। शहीद राजेन्द्र के परिवार में 85 वर्षीय दादी, पत्नी जमना कंवर, दो वर्षीय पुत्र भूपेन्द्र सिंह, दो छोटे भाई गोविंद सिंह व समुन्द्रसिंह शामिल है। शहीद के पिता सांवल सिंह 1987 में सेना में भर्ती हुए थे।
जो हवलदार के पद से 2005 में सेवानिवृत्त हुए। शहीद की माता का 1 जून 2006 और पिता का 16 अगस्त 2013 को निधन हो गया। पूरे परिवार का लालन-पालन का जिम्मा राजेन्द्रसिंह के कंधों पर आ गया। 8 दिसम्बर 2016 को राजेन्द्र सिंह का विवाह जालोड़ा तहसील फलोदी निवासी जमनाकंवर के साथ हुआ।
मकान की छत रही अधूरी

शहीद राजेन्द्रसिंह लगभग दो माह पूर्व मोहनगढ़ आए थे। वे नवम्बर माह में वापिस छुट्टी पर आने का कह कर गए थे, लेकिन वापिस लौटे तो तिरंगे में लिपटकर। शहीद के मकान के कुछ कमरों की छत नहीं है। घर में आंगन व दीवारों पर प्लास्टर करवाना भी बाकी है। नवम्बर में छुट्टी पर आने पर मकान में बने कमरों की छत डलवाने तथा दीवारों के प्लास्टर, आंगन आदि करवाने की योजना बनाई थी, लेकिन ये ख्वाहिश भी अधूरी रह गई।आज भी बंद रहेगा बाजार शहीद राजेन्द्रसिंह की शहादत पर रविवार को व्यापार मण्डल ने सोमवार को भी बाजार बंद रखने का निर्णय लिया है।
गौरतलब है कि रविवार को भी दिन भर कस्बे का बाजार पूरी तरह से बंद रहा। कस्बे के बाजार में जगह-जगह पर ग्रामीणों की भीड़ लगी रही। हर किसी की जुबां पर शहीद राजेन्द्रसिंह की ही चर्चाएं थीं। सभी शहीद की पार्थिव देह के आने का इंतजार था, लेकिन पूरे दिन इंतजार करने के बावजूद शहीद की पार्थिव देह मोहनगढ़ नहीं पहुंचा। सोमवार सुबह तक पार्थिव देह के पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। सदमे में परिवार शनिवार शाम को राजेन्द्रसिंह के आतंकवादियों के लोहा लेते शहीद होने की जानकारी मिली थी। तब हमारा पूरा परिवार सदमे है।
-मनोहरसिंह, शहीद के चचेरे भाई

नहीं जले घरों में चूल्हे

शहीद की शहादत के बारे में सुनकर ग्रामीरणों के घरों में चूल्हे भी नहीं जले। रात्रि में भी ग्रामीण सो नहीं पाए। उनका यों असमय चले जाना काफी दर्द दे गया है।
-राणाराम सुथार, ग्रामीण

शहीद के परिवार की देखरेख के लिए मेडिकल टीम

जैसलमेर. जिला प्रमुख अंजना मेघवाल के निर्देश पर सीएमएचओ डॉ. भूपेन्द्र कुमार बारूपाल ने मोहनगढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अधिकारी डॉ.के.आर.पंवार को शहीद के परिवार को चिकित्सा सेवा मुहैया करवाई। चिकित्साधिकारी डॉ. पंवार एक चिकित्सक, एक कम्पाउण्डर व एक एएनएम को लेकर शहीद के घर पहुंचे। पूरी एक मेडिकल टीम को शहीद के परिवार की देखरेख के लिए लगाया गया।

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