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बाड़मेर

थर-थर कांपा पाकिस्तान, बाड़मेर फतेह कर रहा था छाछरो,जैसलमेर लोंगेवाला

 
– 5 दिसंबर की निर्णायक रात, पाकिस्तान को दिखाई औकात
-5 दिसंबर 1971 की तारीख पाकिस्तान पचास साल बाद भी नहीं भूला है। आज भी इस तारीख के नाम से पाकिस्तान थर-थर कांपने लगता है। इधर बाड़मेर से भारतीय सेना 100 किमी अंदर घुसकर छाछरो को फतेह कर रही थी तो उधर जैसलमेर के लोंगेवाला में 120 भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान की टैंक रेजिमेंट को नस्तेनाबूद कर छक्के छुड़ा रही थी।

बाड़मेरDec 05, 2020 / 09:24 am

Ratan Singh Dave

थर-थर कांपा पाकिस्तान, बाड़मेर फतेह कर रहा था छाछरो,जैसलमेर लोंगेवाला

जैसलमेर का लोंगेवाला यद्ध स्थल। यहां पाकिस्तानी सेना टैंक,जीप,ट्रक छोड़कर भाग गई थी। भारतीय सेना ने इस युद्ध स्थल को स्मारक के रूप मे ंविकसित किया है जहां पर हर वर्ष हजारों लोग पहुंचते है और इस शौर्य की जमीन को छू कर गौरवान्वित होते है। फोटो-पत्रिका



रतन दवे
बाड़मेर/जैसलमेर.
5 दिसंबर 1971 की तारीख पाकिस्तान पचास साल बाद भी नहीं भूला है। आज भी इस तारीख के नाम से पाकिस्तान थर-थर कांपने लगता है। इधर बाड़मेर से भारतीय सेना 100 किमी अंदर घुसकर छाछरो को फतेह कर रही थी तो उधर जैसलमेर के लोंगेवाला में 120 भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान की टैंक रेजिमेंट को नस्तेनाबूद कर छक्के छुड़ा रही थी। सुबह की चाय जोधपुर,दोपहर का खाना जयपुर और शाम को दिल्ली पहुंचकर डिनर करने की शेखियां बघार रहे पाकिस्तान की सेना उल्टे पांव दौड़ पड़ी। रेगिस्तान ने 5 दिसंबर ऐसी तारीख तय की जो आज तक पाकिस्तान को पश्चिमी सीमा तक आने से पहले थरथरा देती है।
बाड़मेर- 5 दिसंबर 1971
ब्रिगेडियर भवानीसिंह जयपुर ने मोर्चा संभाल रखा था। यहां उन्होंने रेगिस्तानी रास्तों से छाछरो तक जाने के लिए एक तरफ से डाकू बलवंतसिंह की मदद ली और दूसरी ओर पाकिस्तान में ही रेल राज्यमंत्री रहे और कुछ समय पूर्व भारत आ चुके लक्ष्मणसिंह सोढ़ा और तेरह अन्य लोगों के साथ सैन्य टुकड़ी तैयार की और रास्तों के वाकिफ इन लोगों के साथ बाखासर, बावड़ी और अन्य दुर्गम रास्तों से पाकिस्तान में घुस गए। सर्जिकल स्ट्राइक का उनका यह निर्णय अदम्य साहस का वो निर्णय था कि 3 दिसंबर को रवाना हुई भारतीय सेना ने पाकिस्तान ने ठिकानों पर तिरंगा फहराते हुए पांच दिसंबर की सुबह तक छाछरो क्षेत्र में प्रवेश कर लिया और छाछरो में फतेह का झण्डा फहरा दिया। 100 किमी तक पाकिस्तान की जमीन भारत के कब्जे में थी, जिसे शिमला समझौते बाद लौटाया गया।
जैसलमेर- 4-5 दिसंबर 1971
रेगिस्तारन का बॉर्डर का गांव लोंगेवाला। 23 पंजाब रेजीमेंट मेजर कुलदीपसिंह चांदमारी के साथ 120 जवानों की टुकड़ी थी। सामने पाकिस्तान के करीब 4000 सैनिक और टैंकर रेजीमेंट। अदम्य साहस, सैन्य क्षमता और देशभक्ति के जज्बे की सिरमौर इस निर्णायक लड़ाई में मेजर कुलदीपसिंह ने कदम पीछे हटाने की बजाय युद्धकौशल दिखाते हुए लोहा लिया। नतीजतन पाकिस्तान के 4000 सैनिकों पर कहर बनकर टूट पड़े,नतीजतन पाकिस्तानी सेना को उल्टे पांव दौडऩा पड़ा।
पाकिस्तान अब इधर झांकता भी नहीं
1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान की हिम्मत नहीं है कि पश्चिमी सीमा की ओर झांके। घुसपैठ व तस्करी की छोटी-बड़ी वारदात के अलाव पाकिस्तान यहां कदम आगे बढ़ाने की जुर्रत नहीं कर पाया है। भारत ने इधर तारबंदी कर दी है। हाईमास्क लाईट के साथ ही चाक चौबंद चौकसी कर रखी है। बीएसएफ चौबीसों घंटे मुश्तैद रहकर यहां दुश्मन की हर नापाक हरकत पर नजर रखे हुए है। उधर पाकिस्तान पश्चिम की इस सीमा पर प्रतिदिन की गश्त भी नहीं करता है।
प्रधानमंत्री दिवाली को चेता कर गए..
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दिपावली के दिन जैसलमेर के लोंगेवाला पहुंचे। उन्होंने यहां लोंगेवाल युद्ध को इतिहास की बड़ी लड़ाई बताते हुए चेताया कि रेगिस्तान के इस इलाके से चेतावनी है कि पाकिस्तान भारत को आजमाए नहीं..। उन्होंने लोंगेवाला के शहीदों और वीर सैनिकों के अदम्य साहस को यहां से सैल्यूट किया था।

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