युवक पर चोरी का संदेह था और इसके लिए जरूरत थी तो घर पर पूछताछ होती या फिर थाने बुलाकर पूछताछ के बाद शाम को घर भेज देती। जरूरत होती तो फिर बुला लेती। पुलिस ने युवक को बिना किसी कागजी कार्रवाई के रातभर अवैध तरीके से थाने में ही रखा।
आम आदमी के लिए थाने और पुलिस का डर तो वैसे भी है और उसको रातभर थाने में रखा जाए तो वह खौफजदा ही रहा होगा, लेकिन पुलिस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
पुलिस के लिए यह रोजमर्रा की बात है। इसके बाद पुलिस ने युवक के साथ क्या बर्ताव किया, यह जांच का विषय है लेकिन उसकी अवैध हिरासत में ही मौत हो गई। सवाल यह है कि पूछताछ के नाम पर किसी भी आम आदमी को इस तरह पुलिस थाने में कई घंटों और पूरी रात रखना कहां कानून सम्मत है? युवक के खिलाफ मामला दर्ज नहीं था, यानि उसको अभी तक मुलजिम नहीं माना था तो उसको मानसिक यातना में रखने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
जिला मुख्यालय पर ही स्थित ग्रामीण थाने में हुई इस घटना से साबित होता है कि पुलिस कर्मियों में उच्चाधिकारियों व राज्य सरकार का कोई भय ही नहीं है। पुलिस एेसे मामलों में बार-बार क्यों घिर रही है? थानाधिकारी का निलंबन, पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर और हत्या का मामला दर्ज करने की कार्रवाई घटना के बाद हुई है
लेकिन प्रश्न यह है कि थानों में इस तरह कितने लोग प्रतिदिन पूछताछ के लिए लाकर बैठा दिए जाते हैं? कितने लोगों को रात को पुलिस घर से उठाती है? कितने लोगों को पुलिस पूछताछ के नाम पर भय का माहौल बना रही है? पुलिस का आम आदमी के घर पर दबंगई के साथ प्रवेश और उसको खौफजदा करने की कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक व्यवस्था में ‘सरकार’ के चेहरे को सामने लाती है।