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हरी खाद मृदा के लिए संजीवनी बूटी-डॉ.विनय कुमार

हरी खाद से भूमि में सुधार होता है तथा मृदा में जल धारण क्षमता में वृद्वि होती

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हरी खाद मृदा के लिए संजीवनी बूटी-डॉ.विनय कुमार

हरी खाद मृदा के लिए संजीवनी बूटी-डॉ.विनय कुमार

बाड़मेर. कोरोना संक्रमण के बीच कृषि वैज्ञानिक किसानों को जायद फसल प्रबंधन एवं खरीफ फसल में बेहतर उत्पादन को लेकर सोशल मीडिया के मार्फत जानकारी दे रहे हैं, जिससे कि वे कोरोना काल में बेहतर उत्पादन कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सके। इसी कड़ी में केवीके दांता के वैज्ञानिकों ने किसानों को हरी खाद के लेकर जानकारी दी।

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार ने बताया कि हरी खाद के लिए ढ़ैचा की बुवाई का समय मई से जून उपयुक्त होता है। ढ़ैचा का 60 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर प्रयोग करना चाहिए तथा जब पौधे 1 से 2 फीट के हो जाए या बुवाई के 40 से 45 दिन में मिट्टी पलटने वाले हल या रोटावेटर से खेत में दबा देना चाहिए।

इससे तैयार होने वाली हरी खाद से भूमि में सुधार होता है तथा मृदा में जल धारण क्षमता में वृद्वि होती है। साथ ही फसलों के लिए आवश्यक पौषक तत्वों, कार्बनिक कार्बन, एंजायम एवं विभिन्न मित्र जिवाणुओं आदि में वृद्वि होती है।

केन्द्र के पशुपालन वैज्ञानिक बी.एल.डांगी ने बताया कि किसान पशुओं के गोबर का उपयोग अपने घर में अन्न पकाने में प्रयोग करें।

उन्होंने कहा कि जिन फसलों के भूसे को जानवर नहीं खाते हैं, उनको एक गड्डा खेत खलियान के पास बनाकर उसमें डाल दें। सात से आठ माह में अच्छे पौषक तत्वों युक्त कम्पोस्ट खाद तैयार होगी व गड्डे के स्थान पर नापेड में भी भरकर कम्पोस्ट बनाई जा सकती है ।


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