सीमावर्ती जिला बाड़मेर जीरा उत्पादक के रूप में अपनी विशेष पहचान रखता है। यहां रबी की बुवाई में २ लाख १५ हजार हैक्टेयर में हर साल जीरा बोया जाता है। करीब आठ लाख क्ंिवटल जीरा होता है जिससे किसानों को नौ अरब रुपए मिलते हैं। एेसे में एक तरफ से जीरा थार में खुशहाली लेकर आता है लेकिन इस बार जीरे की उपज पिछले सालों के मुकाबले कम होगी। क्योंकि मौसम में बार-बार परिर्वतन, तेज सर्दी नहीं पडऩे पर अक्टूबर,नवम्बर में जीरे की बुवाई कम ही हुई है। वहीं बाद में भी किसानों ने जीरे की जगह सरसों व अन्य फसलों की बुवाई में रुचि दिखाई जिस पर लक्ष्य से जीरा कम बोया गया है। गौरतलब है कि इस बार जीरा की बुवाई का लक्ष्य २ लाख १५ हजार हैक्टेयर था जिसके मुकाबले २ दिसम्बर तक १ लाख ६६ हजार ७२ हैक्टेयर में ही जीरा बोया हुआ है। आगामी कुछ दिनों में बुवाई का सीजन खत्म हो जाएगा, जिस पर यह अनुमान है कि इस बार जीरा कम बोया जाएगा।
गर्मी के चलते घटी रुचि, भाव भी कम– जीरे के लिए सर्दी का मौसम उपयुक्त माना जाता है। विशेषकर बुवाई के बाद तेज सर्दी होने पर जीरा अंकुरित होता है, लेकिन इस बार अक्टूबर-नवम्बर में मौसम दोहरा नजर आया। दिन में गर्मी रही तो रात में भी अपेक्षाकृत कम सर्दी पड़ी जिस पर किसानों को जीरा बोना घाटे का सौदा लगा।
वहीं, बाजार में जीरे के दाम भी एक सौ बीस रुपए किलो तक आ गए है जबकि पूर्व में एक सौ साठ- सत्तर रुपए मिल रहे थे। इस पर किसानों ने जीरे में कम रुचि दिखाई। करीब दो अरब रुपए का जीरा इस बार कम होने का अंदेशा है। रबी की बुवाई भी प्रभावित- मौसम के चलते रबी की बुवाई भी प्रभावित हुई है। जिले को ३ लाख ४७ हजार हैक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य मिला हुआ था जिसके मुकाबले ३ लाख १२ हजार ४८ हैक्टेयर में बुवाई अब तक हुई है जो कि लक्ष्य का करीब नब्बे फीसदी है।
कम बुवाई हुई- इस बार जीरे की बुवाई कम हुई है। मौसम की मार के साथ भावों में कमी इसका कारण है। दूसरी फसलों की बुवाई भी थोड़ी कम हो रही है।- डॉ. प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक केवीके गुड़ामालानी