– 80 से 90 हजार में बनती है एक बेरी दस साल में से सात साल भीषण अकाल पड़ा फिर भी पेयजल की दिक्कत नहीं हुई। यह करिश्मा हुआ है बेरियों छोटी कुई के कारण।
गडरारोड, शिव और बाड़मेर में 1750 बेरियां हैं। यहां 25—30 फुट की गहराई में पीने योग्य पानी मिल रहा है। इन बेरियों ( water reservoir ) के कारण ही बरसात का पानी जमीन में जाता है और कई स्थानों पर फैल जाता है। यह पानी एक तालाब जितना रहता है।
रामसर में एक तालाब में 55 बेरियां हैं। तालाब से पानी खत्म होने के बाद भी बेरियों से 60 गांव को पूरे साल का पानी मिल जाता है। डेढ़ किलोमीटर दूर पहाड़ों से तालाब तक एक चैनल बनाया गया है। इससे पहाड़ों का पानी आता है, जिससे हर बारिश में तालाब भर जाता है और बेरियां रिचार्ज हो जाती हैं।
लगभग 30 फुट गहरी और 10 फुट के व्यास में छोटी कुई बेरी की खुदाई होती है। धोरे के आगोश में जहां समतल जमीन हो, वहां धोरों से रिसा हुआ और बहाव का पानी बारिश में जमीन में उतरता है। यहीं अधिकांश बेरियां हैं। बाड़मेर जिले में एक लाख की आबादी इससे लाभान्वित हो रही है।
पानी बचाने की इस परंपरा को अब सरकारी संरक्षण मिलने की भी उम्मीद जगी है। बाड़मेर जिला परिषद के कार्यकारी अधिकारी मोहनदान रतनू ने बताया कि मनरेगा के तहत बेरियों को लेकर प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। जिले में 1750 बेरियां मिली हैं। 800 का जीर्णोद्धार किया जाएगा।