scriptपानी से रोज की जंग, पाकिस्तान से तो 1965 और 71 में ही लड़े | Water scarcity in villages of border | Patrika News
बाड़मेर

पानी से रोज की जंग, पाकिस्तान से तो 1965 और 71 में ही लड़े

बॉर्डर के गांवों में पेयजल किल्लत
 

बाड़मेरFeb 21, 2019 / 12:29 pm

ओमप्रकाश माली

Water scarcity in villages of border

Water scarcity in villages of border

भीखभारती गोस्वामी

गडरारोड़. बॉर्डर के गांवों में पेयजल किल्लत को लेकर हालात त्राही-त्राही वाले है। सीमांत गांव के लोग सैनिकों की भूमिका में है जो देश की सुरक्षा को हमेशा महत्व देते है लेकिन इनकी पीड़ा है कि मूलभूत जरूरतों को लेकर भी सरकार और प्रशासन इनका ख्याल नहीं रखते है। बॉर्डर के आखिरी गांव अकली के लोग आजादी के बाद से पानी की समस्या से त्रस्त है। वे कहते है पाकिस्तान से तो 1965 और 1971 दो ही युद्ध लड़े है लेकिन पानी के लिए तो हमारी रोज की जंग है।
यह गांव मुनाबाव बॉर्डर पर पाकिस्तान की सीमा से 500 मीटर की दूरी पर ही है। 300 से अधिक घरों की आबादी के इस गांव में पानी के लिए बेरियां बनी है जिनसे मुश्किल से पीने लायक पानी आता है। अनुसूचित जाति बस्ती के ये परिवार कहते है कि इन बेरियों के पास ही एक ट्युबवेल(महज पांच लाख ) का खोद दिया जाए तो उम्मीद है बेरियों की तरह यहां पर भी पानी निकल आएगा और इस समस्या का बड़ा समाधान होगा लेकिन आरोप लगाते है कि जनप्रतिनिधि उनको वोटों के गणित से तौलते है। ईवीएम के बाद तो अब वोट किसी को इधर-उधर हो जाए तो फिर बात ही नहीं करते है। लिहाजा पानी की पीड़ा का समाधान नहीं हो रहा है।
बेरियों में खींचती है पानी

गांव की महिलाओं का झुण्ड। यहां बेरियों पर पहुंचकर करीब 50 फीट लंबी रस्सी और उससे बंधी एक बड़ी बाल्टी को पानी में डालती है। यह बाल्टी भरती है तो इसको खींचने के लिए तीन-चार महिलाएं रस्सी लेकर आगे दौड़ती है। यह प्रक्रिया दिनभर चलती है। देखकर लगता है कि इन महिलाओं के लिए पानी कितना महत्व रखता है।
एक ट्युबवेल बना दे

बेरियों के बीच अनुसूचित जाति की बस्ती में एक ट्युबवेल बना दिया जाए तो 70 साल की इस समस्या का समाधान हो जाए। कई बार कह चुके लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। गलत जगह ट्युबवेल बनाने से फेल हो जाते है।
– आत्माराम, मेघवाल, अकली

सब युद्ध का पूछते है पानी का पूछिए

यहां जो भी आता है पूछता है युद्ध के क्या हालात है। पाकिस्तान के बारे में बताओ। हमें पानी का भी तो पूछो…और पूछने से क्या होगा, आप तकलीफ कैसे दूर करोगे। मैं 74 साल का हो गया हूं। सीमा पर हल्की सी हलचल हों तो तुरंत बीएसएफ को बताते है।
युद्ध होगा तो सबसे पहले हमारा गांव घिरेगा। कोई फर्क नहीं, हमने खुद ने यह जमीन चुनी है। बाप-दादा जहां बसे है वहीं हम भी रहेंगे, हम डरते थोड़े ही है लेकिन सरकार भी सोचे, अफसर भी सोचे। हम पानी ही तो मांग रहे है…। बस..इतना काम कर दो हमारी पीढि़या यहां रहकर पाकिस्तान से जंग ले लेगी।- कालूराम, ग्रामीण

Home / Barmer / पानी से रोज की जंग, पाकिस्तान से तो 1965 और 71 में ही लड़े

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो