बड़वानीPublished: Feb 28, 2019 10:57:02 am
मनीष अरोड़ा
एनआरसी में रोजाना 40 से 50 बच्चों को ला रहे जांच के लिए, विभाग का तर्क पलायन से लौटे बच्चों की करवा रहे जांच, दो से तीन बच्चों में जांच के दौरान आ रहा कुपोषण सामने
Growth of malnutrition, department hidden data
ऑनलाइन खबर : विशाल यादव
बड़वानी. महिला अस्पताल के पास कुपोषित बच्चों के लिए बने बाल शक्ति केंद्र में इन दिनों कुपोषित बच्चों की जांच की जा रही है।बाल शक्ति केंद्र में रोजाना 40 से 50 बच्चों को लेकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं पहुंच रही है। इन बच्चों की जांच के बाद दो से तीन बच्चे कुपोषण का शिकार निकल रहे है।जिले में कुपोषण का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और विभाग है कि कुपोषण के आंकड़े छुपाने में लगा हुआ है। विभाग का तर्क है कि जिले में कुपोषण कम हुआ है। वहीं, रोजाना हो रही बच्चों की जांच को पलायन से लौटे बच्चों की जांच बताई जा रही है।
कुपोषण का दंश दूर करने के लिए शासन द्वारा हर माह करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। कुपोषण है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। जिले में कुपोषण का आंकड़ा देखा जाए तो 48809 बच्चे कम वजन की श्रेणी में और 3328 बच्चे अति कम वजन की श्रेणी में है। ये आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। बाल शक्ति केंद्र में 9 फरवरी से जिले की हर आंगवाड़ी केंद्र से बच्चों को जांच के लिए लाया जा रहा है। वर्तमान में बाल शक्ति केंद्र में 17 बच्चे कुपोषण के चलते भर्ती है। वहीं, कुपोषण का शिकार दो से तीन बच्चे रोज सामने आ रहे हैं, जिन्हे माता-पिता बाल शक्ति केंद्र में भर्ती करने से कतरा रहे है।
ठीक होने के बाद फिर हो रहे कुपोषित
कुपोषण का शिकार कई बच्चे ऐसे भी है जो पहले भी कुपोषण के चलते बाल शक्ति केंद्र में भर्ती हो चुके थे और ठीक होने के बाद घर जा चुके थे। इसमें से अब कुछ बच्चे दोबारा कुपोषण का शिकार हो चुके है। बाल शक्ति केंद्र में भर्ती इकेश पिता अहरिया निवासी चिखलिया को दोबारा कुपोषण के चलते भर्ती किया गया है।विभाग का कहना है कि कुपोषण दूर होने के बाद परिवार वाले उसकी देख रेख नहीं कर रहे है। जबकि कुपोषित बच्चे के ठीक होने के बाद आंगनवाड़ी की जिम्मेदारी है कि बच्चे का फॉलोअप करे और उसे पूरा पोषण आहार दे ताकि बच्चा दोबारा कुपोषित न हो। विभाग का तर्क है कि उनके द्वारा दिया जा रहा पोषण आहार 600 कैलोरी का होता है, जबकि बच्चे को 2600 कैलोरी डाइट की जरूरत होती है। ये डाइट पूरा करने का काम परिवार का होता है। अब सवाल ये उठता है कि जब लाखों रुपए रोजाना कुपोषण के नाम पर पोषण आहार पर खर्च किए जा रहे है तो बच्चों में कुपोषण कैसे बढ़ रहा है।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता का बच्चा ही कुपोषित
आंगनवाडिय़ों के माध्यम से जिले में कुपोषण को दूर करने की बात कही जा रही है।बाल शक्ति केंद्र में भर्ती साढ़े चार माह की अवनि पिता शांतिलाल जमरे अति कुपोषित की श्रेणी में है। बच्ची का वजन ढाई किलो बताया जा रहा है। अवनि की मां मनीषा स्वयं एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है, जो मोरकट्टा में पदस्थ है। जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की बच्ची ही कुपोषण का शिकार है तो दूरस्थ पहाड़ी इलाकों में बच्चों की स्थिति समझी जा सकती है।
एक स्टाफ के भरोसे बाल शक्ति केंद्र
कुपोषण की रोकथाम के लिए बना बाल शक्ति केंद्र भी अव्यवस्थाओं का शिकार हो रहा है।यहां मात्र एक स्टाफ की ड्यूटी है। जिसके जिम्मे बच्चों की डाइट, दवाओं का ध्यान रखने के साथ ही रोजाना 40 से 50 बच्चों की जांच का जिम्मा भी है। वजन और कद के माप से बच्चों में कुपोषण की जांच की जाती है। मौजूदा स्टाफ अनुपमा गुप्ता का कहना है कि जांच के दौरान तीन से चार घंटे का समय लग जाता है। इस दौरान भर्ती बच्चों पर ध्यान नहीं देने का आरोप भी लगाया जाता है। एकमात्र स्टाफ होने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
पलायन से लौटे बच्चों की करवा रहे जांच
भौंगर्या पर्व के लिए पलायन करने वाले परिवार वापस लौटे हैं, जिनके बच्चों की जांच करवाई जा रही है। इसका मकसद ये हैकि कोई बच्चा कुपोषण का शिकार तो नहीं है, यदि कुपोषित निकल रहा है तो इलाज किया जा रहा है।कुपोषण खत्म होने के बाद बच्चा दोबार कुपोषित हो रहा है तो उसमें उसके माता-पिता की गलती है।बाल शक्ति केंद्र में स्टाफ बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य विभाग को लिखा जाएगा।
अब्दुल गफ्फार खान, जिला परियोजना अधिकारी महिला एवं बाल विकास