इस तालाब पर अतिक्रमणों का सिलसिला करीब तीन दशक पहले ही शुरू हो गया, लेकिन नगर विकास न्यास, जिला प्रशासन व नगर निगम ने कोई ध्यान नहीं दिया। यह जमीन मास्टर प्लान में ग्रीन बेल्ट में शामिल होने के बावजूद इस पर अतिक्रमण होते रहे और प्रशासन मूक दर्शक बना रहा।
नाला भी नहीं छोड़ा तालाब में होकर बरसाती नाला भी निकलता है, तालाब में बसे अतिक्रमियों ने पहले इस नाले को छोड़कर अतिक्रमण किए थे, लेकिन कुछ वर्षों पहले शहर को बाढ़ से बचाने के लिए डायवर्जन चैनल का निर्माण कर दिया गया। इसके बाद छत्रपुरा तालाब के नाले में बरसात पानी आना बंद हो गया। इससे लोगों के हौसले और बढ़ गए। अब तो हालात यह है कि लोगों ने इस नाले की जमीन पर भी अतिक्रमण कर लिया। तालाब में इस नाले के अलावा अब कोई जमीन नहीं बची, एेसे में अब इस नाले में ही अतिक्रमण जारी है।
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अभी भी मौजूद है अवशेष छत्रपुरा तालाब में हुए अतिक्रमणों के बाद लोगों ने तालाब की मजबूत दीवारों तक को तोड़ दिया, लेकिन इस तालाब में जाने के लिए बनी सीढि़यां आज भी मौजूद है। कुछ स्थानों पर तालाब की दीवार भी दिखाई देती है। बुजुर्ग धन्नालाल गुर्जर ने बताया कि रियासत काल में सिंचाई के लिए प्रयुक्त होने वाले इस तालाब में आजादी के बाद पठारी क्षेत्र में शहर का अधिक विस्तार होने के कारण पानी की आवक कम हो गई। तालाब खाली रहने लगा तो सूखी जगह पर लोग बाड़े बनाकर पशुपालन करने लगे। इसके बाद यहां लोगों ने ईंट भट्टे भी लगा लिए थे। इन लोगों को तालाब में बसता देख प्रभावशाली लोगों की भी जमीन पर नजर जम गई। उन्होंने यहां कब्जा कर लोगों को भूखण्ड बेच दिए।