पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के तहत भोपाल से आए डॉ. संदीप मिश्रा आरएनटीसीपी पर्यवेक्षक, बीएमओ डॉ. जेपी पंडित एवं बड़वानी की चिकित्सकीय टीम ने टीबी उपचार के संबंध में स्थानीय सिविल अस्पताल में टीबी यूनिट डॉट प्रोवाइडर मॉडयूलर को लेकर कार्यशाला का आयोजन किया। इस दौरान शासकीय एवं निजी चिकित्सक उपस्थित हुए। कार्यशाला में डॉ. मिश्रा ने क्षय नियंत्रण कार्यक्रम की जानकारी दी। बताया कि कार्यक्रम के तहत 8 वर्षों में टीबी को पूरी तरह से समाप्त करना है। मरीजों की संख्या शून्य करनी है। सभी मरीजों को उपचार प्रदान कर उन्हें स्वस्थ बनाना है। इसके लिए अब कार्यक्रम के तहत निजी अस्पतालों में भी उपचार की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। निजी चिकित्सक भी संभावित मरीज की पहचान कर शासकीय अस्पताल को स्लाइड भिजवा सकेंगे। इसके लिए व्यवस्थाएं भी शासन की ओर से की जाएंगी। मरीजों की पहचान करने वाले चिकित्सक एवं निजी अस्पतालों को प्रोत्साहन राशि भी शासन की ओर से मिलेगी। कार्यशाला में डॉट प्रोवाइडर मॉडयूलर के कार्य करने के तरीकों से भी अवगत कराया गया। इसकी स्थापना निजी अस्पतालों में की जाएगी। कार्यशाला में चिकित्सकों ने डीएमसी केंद्र के संबंध में जरूरी प्रश्न भी किए, जिसके उत्तर दिए गए। इस दौरान पानसेमल, निवाली, सिलावद, राजपुर के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर सहित सेंधवा मेडिकल एसो. के सदस्य मौजूद रहे। बड़वानी से सेंधवा आई टीम में ट्रीटमेंट सुपरवाइजर सुकांत विश्वास, एमईआईओ अनिल पटेल आदि शामिल रहे।
इस दौरान भोपाल व जिले से पहुंची टीम के साथ बीएमओ डॉ. पंडित ने स्थानीय करुणा अस्पताल में पहले डीएमसी केंद्र की शुरूआत की। यहां पर उपचार की तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। यहां पर आने वाले मरीजों को टीबी का नि:शुल्क उपचार मिल सकेगा। मरीजों को नि:शुल्क औषधियां भी दी जाएंगी। केंद्र पर दवाइयां भी जल्द उपलब्ध करा दी जाएंगी। इसके अलावा सेंधवा में स्थित दो अन्य निजी अस्पतालों में भी डीएमसी केंद्र खोले जाने की योजना बनाई जा रही है।
सिविल अस्पताल सेंधवा के एसटीएलएस आनंद अवाया ने बताया कि जनवरी से लेकर जुलाई तक ब्लॉक क्षेत्र में कुल 169 मरीज टीबी के मिले हैं। जिनका उपचार भी किया जा रहा है। इसमें 13 मरीज एमडीआर टीबी से ग्रसित हैं। मरीजों को 6 माह का ट्रीटमेंट दिया जाता है। एमडीआर मरीजों का ट्रीटमेंट 24 माह का होता है। इसी तरह पुराने टीबी के मरीजों को 8 माह का ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। मरीजों को दिए जाने वाले दवाई के पैकेट पर नि:शुल्क टोल नंबर भी दिया जाता है। दवाई लेने के बाद टोल नंबर पर मरीजों को मिस्ड कॉल देना होता है। मिस्ड कॉल नहीं आने पर उपचार करने वाले चिकित्सक एवं संबंधित अस्पताल को स्वत: मैसेज से सूचित कर दिया जाता है। इसके बाद चिकित्सक मरीज को दवा लेने को कहते हैं।