मवेशी पालन हो रहा मुश्किल
इस बांध में वर्तमान में 9 फीट के करीब पानी बचा है। यह पानी करीब 15 दिन तक रह सकता है। बांध के पास रहने वाले बलबीर मीणा ने बताया कि जब से इस बांध में पानी की आवक घटी है तब से फसलें प्रभावित हुई है। इससे मवेशियों को भरपूर पानी नहीं मिलने से मवेशी पालन भी प्रभावित हो रहा है। बांध से मुख्य नहर टसकोला ग्राम तक गई है। टसकोला ग्राम सिंचाई विभाग की चौकी है। यहां से एक वितरिका पावटा होते हुए किराडोद ग्राम तक दूसरी वितरिका भोनावास होते हुए फतेहपुरा तक तीसरी वितरिका रामपुरा तक व चौथी वितरिका पण्डितपुरा तक गई है।
इस बांध में वर्तमान में 9 फीट के करीब पानी बचा है। यह पानी करीब 15 दिन तक रह सकता है। बांध के पास रहने वाले बलबीर मीणा ने बताया कि जब से इस बांध में पानी की आवक घटी है तब से फसलें प्रभावित हुई है। इससे मवेशियों को भरपूर पानी नहीं मिलने से मवेशी पालन भी प्रभावित हो रहा है। बांध से मुख्य नहर टसकोला ग्राम तक गई है। टसकोला ग्राम सिंचाई विभाग की चौकी है। यहां से एक वितरिका पावटा होते हुए किराडोद ग्राम तक दूसरी वितरिका भोनावास होते हुए फतेहपुरा तक तीसरी वितरिका रामपुरा तक व चौथी वितरिका पण्डितपुरा तक गई है।
अवैध बजरी खनन का मुख्य केंद्र बना बांध
सहायक अभियंता यशवीरसिंह ने बताया कि 1996 बाद पानी की कमी के कारण नहरों में पानी छोडऩा बंद कर दिया गया। इस बांध के ओवर फ्लो पानी का काम लेने के लिए 1992 में बनाडी ग्राम में बांध बनाया गया था। संयोगवश यह बांध बना उस दिन से बुचारा बांध में पानी की आवक बंद हो गई, जिससे बनाड़ी बांध पानी संग्रहण की बजाए अवैध बजरी खनन का मुख्य केंद्र बन गया। रियायत कालीन बांध होने के कारण तत्कालीन जयपुर महाराज यहां आखेट खेलने आते थे व कई दिनों तक यहा विश्राम करते थे। जयपुर से बुचारा आते समय पावटा कस्बे में एक विश्राम गृह बनवाया था, जहां ये रात्रि विश्राम करते थे।
सहायक अभियंता यशवीरसिंह ने बताया कि 1996 बाद पानी की कमी के कारण नहरों में पानी छोडऩा बंद कर दिया गया। इस बांध के ओवर फ्लो पानी का काम लेने के लिए 1992 में बनाडी ग्राम में बांध बनाया गया था। संयोगवश यह बांध बना उस दिन से बुचारा बांध में पानी की आवक बंद हो गई, जिससे बनाड़ी बांध पानी संग्रहण की बजाए अवैध बजरी खनन का मुख्य केंद्र बन गया। रियायत कालीन बांध होने के कारण तत्कालीन जयपुर महाराज यहां आखेट खेलने आते थे व कई दिनों तक यहा विश्राम करते थे। जयपुर से बुचारा आते समय पावटा कस्बे में एक विश्राम गृह बनवाया था, जहां ये रात्रि विश्राम करते थे।