कमजोरी का डर
पुरुषों के नसंबदी नहीं कराने का मूल कारण मन में व्याप्त कमजोरी की धारणा है। पुरुषों का सोचना है कि नसबंदी कराने से कमजोरी आती है। उन्हें दिनभर कामकाज करना पड़ता है। नसबंदी के बाद कामकाज में परेशानी होगी। जबकि चिकित्सकों का कहना है कि नई विधि से किसी तरह की कमजोरी नहीं आती है।
यह मिलती है राशि
नसबंदी कराने पर सरकार की ओर से अलग-अलग प्रोत्साहन राशि दी जाती है। नसबंदी कराने पर पुरुषों को दो हजार व महिला को 1400 रुपए दिए जाते हैं। नसबंदी ऑपरेशन फेल होने पर 30 हजार रुपए पीडि़त को देने का प्रावधान है। इसके लिए विभाग को 90 दिन में सूचना देनी होती है।
परिवार नियोजन के तहत नसबंदी शिविर नवम्बर से फरवरी माह तक अधिक होते हैं। क्योंकि इन दिनों में खेतीबाड़ी का कार्य नहीं होता है। इससे ग्रामीण महिलाएं फुर्सत में रहती हैं। सर्दी का मौसम होने से स्वास्थ्य ठीक रहने के अलावा खान पान भी अच्छा रहता है।
वर्ष…लक्ष्य… महिला… पुरुष
2015…1771…1604…73
2014…1461…2351…98
2013…2017…2753…153 पुरुषों के अलावा महिलाओं की मनोवैज्ञानिक सोच है कि पुरुषों के नसबंदी कराने से उन्हें बाद में तकलीफ होती है। जबकि आजकल यह ऑपरेशन पुरुषों के लिए ज्यादा आसान व सुविधाजनक है। पुरुष नसबंदी से किसी भी तरह की शारीरिक कमजोरी नहीं आती है।
डॉ. अश्वनी गोयल ,वरिष्ठ शल्य चिकित्सक, राजकीय बीडीएम अस्पताल कोटपूतली
नसबंदी के मामले में पुरुषों के पीछे रहने का कारण रूढि़वादी है। इसके लिए सेाच में बदलाव जरूरी है। क्षेत्र में पुरुषों को नसंबदी के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन पुरुष इसके लिए आगे नहीं आते हैं।
डॉ.गुमान सिंह यादव, ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी कोटपूतली