कप्तानगंज थाना इलाके के ओझागंज गांव के रहने वाले हरिश्चंद्र ने आठ साल पहले शादी किया था। बेहद गरीबी में जीने वाला हरिश्चंद्र मेहनत-मजदूरी करके जीवन यापन करता था। इसी समय उसकी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया। कुछ ही महीनों के बाद पता चला कि उसकी पत्नी और बेटी दोनों कुपोषित हैं। हरिश्चंद अपनी क्षमता के मुताबिक इनका इलाज कराता रहा लेकिन कोई आराम नहीं मिला।
इस बीच पिछले छह सालों में हरिश्चंद के परिवार में एक-एक कर दो बेटी और एक बेटे ने भी जन्म लिया लेकिन एक बेटी जन्म के छह महीने बाद मर गई। कुपोषण के ही कारण दूसरी बेटी दो महीने की होकर मर गई, जबकि बेटा जन्म के 15 दिनों के बाद ही कुपोषण की चपेट में आकर दम तोड़ दिया। इससे भी अधिक हैरानी की बात ये रही की सात महीने पहले ही हरिश्चंद की पत्नी की भी मौत हो गई।
एक बेटी जो पांच साल कि है उसकी हालत गंभीर है। देखने में महज एक साल की लगती है। पत्रिका से बातचीत में हरिश्चंद्र ने बताया कि कुपोषण ने जहां मेरे परिवार को खत्म कर दिया तो वहीं पिछले तीन महीने से अब कोई उसे काम भी नहीं देता। ऐसे में अब उसके पास कोई सहारा नहीं है जिससे वो जिंदगी जी सके। हरिश्चंद्र कहता है कि अब जो जीना नहीं चाहता।
वहीं इस मामले में एडिशनल डायरेक्टर हेल्थ सीके शाही ने कहा कि आप मुझसे मत पूछिए, यह मेरा विभाग नहीं है और मुझे इस बात की जानकारी भी नहीं है।