जातीय समीकरण के आधार पर बीजेपी को यहां ऐसे उम्मीदवार की दरकार है जो सपा-बसपा गठबंधन की हवा निकाल दे। 2019 में फिर से बस्ती में कमल खिला दे। कहा जा रहा है कि अगर इस सांचे में हरीश दि्ववेदी फिट नहीं बैठे तो उनका पत्ता गोल भी हो सकता है। हालांकि इस बाबत भाजपा अभी कुछ नहीं बोल रही है।
सियासी गलियरों में चल रही चर्चा की बात करें तो राजकिशोर सिंह भाजपा के टिकट की लाइन में सबसे आगे चल रहे हैं। दूसरे नंबर पर बसपा से विधनसभा चुनाव लड़ चुकीं ममता पाण्डेय और भाजपा के टिकट पर लड़ चुके गणेश नारायण मिश्र व बीजेपी नेता राजेन्द्र त्रिपाठी का नाम भी टिकट के दावेदारों में लिया जा रहा है। यह सीट कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल बाबू सिंह कुशवाहा जन अधिकार पार्टी को दे दी हैं। जअपा के टिकट पर यहां से चन्द्रशेखर सिंह मैदान में आएंगे। उनके डमी कैंडिडेट होने का दावा भी किया जा रहा है। अब देखना यह होगा कि बीजेपी यहां प्रत्याशी बदलती है या फिर वर्तमान सांसद पर ही दाव लगाती है। संकेत साफ हैं कि इस सीट पर लड़ाई दिलचस्प होने वाली है।
2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो भाजपा ने मोदी लहर में बस्ती सीट फिर से फतह कर ली। यहां से हरीश दि्ववेदी 3, 57, 680 वोट पाकर 33, 462 वोटों से जीत गए। दूसरे नम्बर पर रहे
समाजवादी पार्टी के बृजकिशोर सिंह को 3, 24, 118 वोट पाए, जबकि बसपा के प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी 2, 83, 747 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे। यहां कांग्रेस के अम्बिका सिंह को महज 27, 673 वोट मिले। 2014 के सपा बसपा के वोटों को जोड़ने पर वोटों की संख्या बढ़कर 607865 हो जा रही है, जो भाजपा को मिले 357680 वोटों से 250185 ज्यादा हैं जो बसपा को मिले वोटों से 33 हजार कम है।
जातीय बुनावट के आधार पर देखें तो यहां 18 लाख मतदाताओं में अकेले दलित वोटर 4 लाख 23 हजार से अधिक हैं, जबकि ओबीसी मतदाताओं की तादाद सात लाख तक पहुंचती है। जनरल वोटरों की तादाद 4 से सवा 4 लाख के बीच बतायी जाती है। अन्य जातियों के मतदाताओं की तादाद भी डेढ़ लाख के आसपास दावा किया जाता है।