मगर आज यह नदी अपने अस्तित्व को लेकर खतरे मे हैं, पानी को तरस रही मां सीता की प्यास बुझाने वाली रामरेखा जनपद की धरती पर भगवान राम के समय के कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल अब उपेक्षा का शिकार हो गए हैं। यहां के लोग यह कहने में काफी गर्व महसूस करते हैं कि राजा दशरथ का पुत्रकामेष्टि यज्ञ स्थल मखौड़ा, भगवान राम की बहन शांता की तपोस्थली श्रृंगीनारी, अयोध्या का प्रवेश द्वार जहां
हनुमान जी पहरा देते थे हनुमानबाग चकोही, राम-जानकी मार्ग यहीं पर है। मखौड़ा को छोड़ अन्य सभी स्थल वीरान और उजाड़ पड़े हैं। इन्हीं प्राचीन धरोहरों में से एक है रामरेखा नदी। स्थानीय जनश्रुतियों को यदि सही मानें तो इस नदी ने कभी जगत जननी मां जानकी की प्यास बुझाई थी।
कहा जाता है कि, जब भगवान राम सीता जी से विवाह कर जनकपुर से अयोध्या लौट रहे थे। तो रास्ते में माता सीता को जोरों की प्यास लगी। आसपास जल का कोई प्रबंधन न देख भगवान राम ने अपने बाण से एक रेखा खींच दी। जिससे जल धारा प्रवाहित होने लगी। माता सीता सहित अन्य लोगों ने इस जलस्त्रोत से अपनी प्यास बुझाई, कुछ देर विश्राम किया और आगे बढ़ गए। इस जलस्त्रोत ने नदी का रूप ले लिया। इसका नाम पड़ा रामरेखा। माना जाता है कि वह स्थान बस्ती जिले का अमोढ़ा गांव था।
जहां भगवान राम ने बांण से रेखा खींची थी। अनादि का काल से क्षेत्र के एक बड़े भू-भाग को सिंचित करने वाली यह नदी अब बदहाल है। स्थानीय लोगों ने इसके प्रवाह क्षेत्र में अतिक्रमण कर लिया है। जगह-जगह पानी का प्रवाह रुक जाने से 17 किलोमीटर लंबी यह नदी समाप्त होने के कगार पर है। अब यह नदी खुद प्यास से तड़प रही है। इसकी न तो कोई पीड़ा सुन रहा है और न ही इसके उद्धार की कोई योजना ही बन रही है।
input- सतीश सिंह