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बस्ती

विवाह के बाद माता सीता के साथ इस गांव में रूके थे भगवान राम, बाण से किया था नदी का निर्माण

विवाह के उपरांत अयोध्या जाते वक्त इस गांव में कुछ देर के लिये रुके थे भगवान राम…

बस्तीNov 30, 2017 / 03:21 pm

ज्योति मिनी

mata sita and god ram spacial story about origin of Ramrekha river

विवाह के बाद माता सीता के साथ इस गांव में रूके थे भगवान राम

राम के नाम पर राजनीति तो बहुत होती है लेकिन क्या वाकई मे भगवान राम से जुड़ी तमाम स्थलों का कोई पूछनहार है, शायद इसका जवाब होगा नहीं। क्योंकि भगवान राम का नाम लेने वाली पार्टी केवल राजनीति कर अपना हित साधती है। ऐसी ही राम से जुड़ी गाथा से हम आपको रुबरु कराएंगे जिसके बारे मे कम लोग ही जानते होंगे। अयोध्या के ठीक बगल 30 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव है अमोढ़ा। जहां भगवान राम माता सीता के साथ विवाह के उपरांत अयोध्या जाते वक्त इस गांव में कुछ देर के लिये रुके थे, और माता सीता को प्यास लगने पर राम ने बाण चलाया था जिससे एक नदी की उत्पत्ति हुई जिसे आज रामरेखा नदी के नाम से जाना जाता है।
मगर आज यह नदी अपने अस्तित्व को लेकर खतरे मे हैं, पानी को तरस रही मां सीता की प्यास बुझाने वाली रामरेखा जनपद की धरती पर भगवान राम के समय के कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल अब उपेक्षा का शिकार हो गए हैं। यहां के लोग यह कहने में काफी गर्व महसूस करते हैं कि राजा दशरथ का पुत्रकामेष्टि यज्ञ स्थल मखौड़ा, भगवान राम की बहन शांता की तपोस्थली श्रृंगीनारी, अयोध्या का प्रवेश द्वार जहां हनुमान जी पहरा देते थे हनुमानबाग चकोही, राम-जानकी मार्ग यहीं पर है। मखौड़ा को छोड़ अन्य सभी स्थल वीरान और उजाड़ पड़े हैं। इन्हीं प्राचीन धरोहरों में से एक है रामरेखा नदी। स्थानीय जनश्रुतियों को यदि सही मानें तो इस नदी ने कभी जगत जननी मां जानकी की प्यास बुझाई थी।
कहा जाता है कि, जब भगवान राम सीता जी से विवाह कर जनकपुर से अयोध्या लौट रहे थे। तो रास्ते में माता सीता को जोरों की प्यास लगी। आसपास जल का कोई प्रबंधन न देख भगवान राम ने अपने बाण से एक रेखा खींच दी। जिससे जल धारा प्रवाहित होने लगी। माता सीता सहित अन्य लोगों ने इस जलस्त्रोत से अपनी प्यास बुझाई, कुछ देर विश्राम किया और आगे बढ़ गए। इस जलस्त्रोत ने नदी का रूप ले लिया। इसका नाम पड़ा रामरेखा। माना जाता है कि वह स्थान बस्ती जिले का अमोढ़ा गांव था।
जहां भगवान राम ने बांण से रेखा खींची थी। अनादि का काल से क्षेत्र के एक बड़े भू-भाग को सिंचित करने वाली यह नदी अब बदहाल है। स्थानीय लोगों ने इसके प्रवाह क्षेत्र में अतिक्रमण कर लिया है। जगह-जगह पानी का प्रवाह रुक जाने से 17 किलोमीटर लंबी यह नदी समाप्त होने के कगार पर है। अब यह नदी खुद प्यास से तड़प रही है। इसकी न तो कोई पीड़ा सुन रहा है और न ही इसके उद्धार की कोई योजना ही बन रही है।
input- सतीश सिंह

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