एतिहासिक है ब्यावर का शूलब्रेड मैमोरियल चर्च
-देश का सबसे बड़ा घडिय़ाल व घंटाघर भी यहीं
देश का सबसे बड़ा घडिय़ाल व घंटाघर भी यहीं
ब्यावर. राजस्थान का पहला शूलब्रेड मैमोरियल चर्च अपने जीवन के 157 बसंत देख चुका है। इसे मदर चर्च भी कहा जाता है। यहीं से प्रदेश में इसाई समाज का विस्तार शुरू हुआ। रेलवे स्टेेशन के पीछे खारचिया क्षेत्र के पांच युवकों ने सबसे पहले इसाई धर्मस्वीकार किया। इन्होंने प्रदेश के विभिन्न शहरों में जाकर प्रभु ईशु मसीह के संदेशों को आमजन तक पहुंचाया। चर्च में प्रभु की सेवा में रहे ३३ पादरियों में सबसे अधिक ३७ वर्ष का सबसे लंबा कार्यकाल संस्थापक रेव्ह. विलियम शूलब्रेड का रहा है। प्रदेश के पहले चर्च में सबसे पुराना घडिय़ाल व घंटाघर भी है। कहते हैं इनकी आवाज पहले मीलों सुनाई देती थी। घंटाघर को बजाने के लिए चार लोगों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता था। यह चारों रस्से को एक साथ खींचते थे। इससे विशेष ध्वनि निकलती थी। 19 मई 2010 को चर्च ने अपनी 150 वीं जयंती मनाई थी।
इतिहास के पन्नों से…
स्कॉटलैण्ड के दो पादरी रेव्ह. स्टील व रेव्ह. विलियम शूलब्रेड ईशु मसीह के संदेशों को पहुंचाने के लिए मुबई के लिए रवाना हुए। जहाज से मुबई बंदरगाह उतरे। यहां उदयपुर के महाराणाओं ने उनकी मदद की। दोनों ने यात्रा बैलगाड़ी से शुरू की। खेराड़ी शिवगंज (आबूरोड)10 फरवरी 1859 को लीवर अबसीस के कारण रेव्ह. स्टील की मृत्यु हो गई। एरिनापुर के कब्रिस्तान में स्टील के शव को दफनाया गया। यहां से डॉ. विल्सन के साथ रेव्ह शूलबे्रड ने आगे की यात्रा शुरू की। 3 मार्च 1859 को रेव्ह. विलियम शूलब्रेड रेलवे स्टेशन स्थित खारचिया पहुंचे। यहीं से 1859 में मिशनरी की शुरुआत हुई। रेव्ह. विलियम शूलब्रेड को 1879 में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से डीडी की उपाधि मिली।
रखी चर्च की नींव…
रेव्ह. विलियम शूलब्रेड ने 3 मार्च 1860 को पहाड़ी पर चर्च की नींव रखी। इसका निर्माण प्रभु यीशु की जन्मस्थली यरूशलेम में बनाए गए मंदिर जैसा है। 12 साल बाद 1872 में चर्च बनकर तैयार हुआ। चर्च का निर्माण इस तरह किया की इसमें लगाई पट्टियां अंदर से एक दूसरे से लॉक हो रखी है। इनके आधार के लिए कहीं भी पोल का निर्माण नहीं हुआ है। कलाकृति देख आज भी यहां आ रहे लोग अचरज करते है। यहां के बाद टॉडगढ़ चर्चका निर्माण हुआ।
इन्होंने बनाई पहचान…
प्रदेश के पहले मदर चर्च में लगा 18 मण का पीतल का घंटा1871 में लंदन से मंगवाया। यह आज भी अपनी विरासत को संजोए है। चर्च की सबसे ऊपरी इमारत पर लगाया गया है। इतना विशाल घंटा महज दो लकडिय़ों के सहारे है। लंदन के जॉन मोर एंड संस से 1873 में पीतल का घडिय़ाल मंगवाया। यह १२ मण का है। कहते हैं इन दोनों की आवाज शहर के चारों कोनों में सुनाई देती थी। ऐसा घंटा व घड़ी देश में कहीं अन्य नहीं है।
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