राइसमिल मालिक ने बुलाया
लिंगमपल्ली राइस मिल के मालिक ने मजदूरों से बात कर इन्हें काम करने के लिए बुलाया था। खगड़िया के डीएम आलोक कुमार घोष ने बताया कि मजदूरों ने उन्हें वापस भेजे जाने के लिए बताया था। राइस मिल मालिक ने मजदूरों की सहमति के बाद तेलंगाना सरकार और बिहार सरकार से बात की। ये सभी मजदूर वहां राइस मिल में काम करते थे।होली में घर आए और कोरोना के लॉकडाउन में फंस गये। सभी खगड़िया जिले के ही रहने वाले हैं। मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन तैयार थी। यह ट्रेन तेलंगाना से बिहारी मजदूरों को लेकर खगड़िया आई थी।स्पेशल ट्रेन से मजदूरों के जाने की सूचना आसपास आग की लपटों जैसी फैल गई। और भी ढेर मजदूर जाना चाहते थे। इस वजह से यह ट्रेन तीन घंटे देर से चल सकी।
बिहार में नहीं है कोई साधन
बाढ़,सूखा, बेरोजगारी और परिवार के पेट की धधकती ज्वाला-ये हकीकत है कि बिहार के लाखों मजदूर जमाने से बिहार से कोसों दूर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए लाखों की संख्या में हर साल पलायन करते आ रहे हैं। कोरोना काल के लॉकडाउन में बंदी के बाद ये सभी असहाय घर आने को लाचार हो गए। पर यह भी कड़वा सच है कि घर रहकर भूख की ज्वाला शांत नहीं हो पाएगी। लाखों लौटते बिहारियों की यही पीड़ा है। नीतीश सरकार ने अब सभी विभागों से यह बेशक कह दिया कि वापस लौटे मजदूरों के लिए भी रोजगार के अवसर तलाशें जाएं मगर बड़ा सच यही है कि घोटालों-घपलों में डूबा अफसरी तंत्र शायद ही इन काम तलाशते लाखों श्रमिकों के लिए कोई अवसर दे सके।
फैक्ट्री में हर रोज 1200 मिलते
होली के बाद घर बैठे इन मज़दूरों को काम नहीं रहा तो पेट की भूख ने फिर इन्हें वहीं लौट जाने पर विवश कर दिया। यह करुण कथा सिर्फ एक खगड़िया और जमुई जिले की नहीं बल्कि समूचे बिहार की है। लिंगमपल्ली राइस मिल में काम करने जा रहे संतोष कुमार मंडल ने कहा, यहां क्या करें। वहां तो हर दिन 1200 रुपए कमा लेते हैं। कोरोना के भय को लेकर पूछने पर कहा,कोरोना से मरेंगे कि नहीं मगर घर बैठे रहे तो बिना खाए-पीए भूख से पक्का मर जाएंगे।