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बेतुल

चौथा दिन : जंगल में कडू कंद खाकर आदिवासी ग्रामीण बिता रहे समय

आदिवासी ग्रामीण को जंगल से हटाने की नाकाम रही प्रशासन की कोशिशें

बेतुलSep 23, 2019 / 11:13 pm

yashwant janoriya

चौथा दिन : जंगल में कडू कंद खाकर आदिवासी ग्रामीण बिता रहे समय

चौथा दिन : जंगल में कडू कंद खाकर आदिवासी ग्रामीण बिता रहे समय

सारनी/पाथाखेड़ा. अपने आपको भूमिहीन बताकर खैरवानी बीट के कंपार्टमेंट 487 में टपरे बनाकर रह रहे आदिवासी ग्रामीण चौथे दिन भी नहीं माने और बारिश के बावजूद जंगल में डटे हैं। वहीं जंगल से ही कडूकंद खोदकर उसे उबालकर खा रहे हैं। इधर वन विभाग के आला अफसर पल-पल की जानकारी जुटा रहे हैं। ग्रामीण जंगल को नुकसान नहीं पहुंचा पाए। पूरे समय वन विभाग की टीम सुरक्षा में तैनात है। सोमवार को पूरा मोर्चा महिलाओं ने संभाला। इससे पहले महिलाओं की संख्या काफी कम थी, लेकिन सोमवार को पुरूषों की अपेक्षा जंगल में महिलाएं ज्यादा थी। उनका स्पष्ट कहना है कि हमारे पास जमीन नहीं है। यह भूमि हमारे पूर्वजों की है। इसी पर ही खेती करेंगे और यहीं रहेंगे। इस दौरान पुलिस, फॅारेस्ट और समाजसेवी लोग भी मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों को समझाने की कोशिश करते रहे। गौरतलब है कि अपने आपको भूमिहीन बताकर गुरुवार रात से खैरवानी पंचायत के डोकली, धकनिभाटा, खैरवानी, तेंदूखेड़ा समेत अन्य गांव के सैकड़ों लोग जंगल में लगभग 200 टपरे बनाकर रह रहे हैं।
शिविर में आए 80 आवेदन: ग्रामीणों की समस्याओं के निवारण के लिए प्रशासन द्वारा प्रभावित गांवों में शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें सड़क, बिजली, खेत बहने, फसल बर्बाद होने और भूमिहीन होने जैसी समस्या के 80 आवेदन मिले हैं। जंगल में बसने वाले ग्रामीणों में आदिवासियों के अलावा कतिया, आदिवासी और यादव समाज के लोग शामिल है। सर्वाधिक संख्या आदिवासियों की है।
– ग्रामीणों के साथ बात की है। हर एक सवाल का उन्हें जवाब दिया है। राजपत्र दिखाया है। जंगल काटना उसमें टपरे बनाकर रहना अपराध की श्रेणी में आता है।बार-बार समझाइश देकर मनाने की कोशिश की जा रही है।
सुदेश महिवाल, एसडीओ, फॉरेस्ट
प्रशासन ने हमारी मांगों को नहीं सुना तो आदिवासी जहर खाकर करेंगे सामूहिक आत्महत्या
नदी के कटाव और आदिवासियों के पास भूमि ना होने के कारण खैरवानी पंचायत के डोकली, पीरभाटा, तेंदूखेड़ा, ढकनी, मेहेदीखेड़ा और खैरवानी गांव के 250 आदिवासी वन भूमि पर बैठकर इसका मालिकाना हक मांगने का काम कर रहे हैं। यदि जिला प्रशासन ने नहीं दिया तो 250 आदिवासी परिवार सामूहिक रूप से जहर खाकर इसी जंगल में आत्महत्या करने को मजबूर रहेगा। – सुखनंदन धुर्वे, तीरभाटा वार्ड 2 पंच
60 वर्ष पूर्व हमारे दादा, परदादा ने इस वन भूमि पर खेती की थी। जबकि आस-पड़ोस के खसरा नंबर 39, 40, 53 पर वर्तमान समय में खेती हो रही है। लेकिन खसरा नंबर 44 में वन विभाग की भूमि कैसे हो गई। यदि हमें न्याय नहीं मिला तो उग्र आंदोलन करेंगे।
– रामजी धुर्वे, ढकनी गांव निवासी
हमारा जीवन तो जैसे तैसे गांव के छोटे से मकान में बीत गया, लेकिन हमारे बच्चे किस तरह का लालन पोषण करेंगे इसको देखकर गांव के 250 से अधिक परिवार के लोगों ने वन भूमि पर धरना करके वन भूमि मांगने का काम किया है। जो गलत नहीं है।
– रामकली बाई, निवासी डोकली

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