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बेतुल

जानिए… कहां पूजा जाता है रावण के पुत्र मेघनाद को

ग्रामीण आज भी पूजन कर सालों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं, लगता है पारंपरिक मेला भी

बेतुलMar 11, 2020 / 11:22 pm

yashwant janoriya

आदिवासी आज भी पूजन कर सालों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं

आदिवासी आज भी पूजन कर सालों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं

बैतूल. देश में भले ही दशहरा पर रावण और मेघनाद के पुतले दहन किए जाते है, लेकिन साल में एक दिन ऐसा भी आता है, जब मेघनाद पूजा की जाती है। धुरेंडी के दूसरे दिन बुधवार को शहर के टिकारी क्षेत्र में लगने वाले मेघनाथ मेले में पूजा-अर्चना करने लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। आदिवासियों की परंपरा के प्रतीक मेघनाथ बाबा के मेले में बाहरी बाधाओं और अला-बला को दूर करने के लिए भगत द्वारा ५० फीट ऊंची गल पर चढ़कर पूजा-अर्चना की गई। यह परंपरा पिछले कई सालों से इसी तरह चल रही है। मेघनाथ बाबा समिति द्वारा इस मेले का आयोजन हर वर्ष किया जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में शहरवासियों सहित आदिवासियों द्वारा हिस्सा लिया जाता है।
दो सौ सालों से चली आ रही सभ्यता और संस्कृति
टिकारी स्थित मेघनाथ बाबा मेला कमेटी के सदस्यों ने बताया कि यह मेला पिछले काफी सालों से इसी तरह लगते आ रहा है। मूलत: यह मेला आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है। जिसे तकरीबन २०० साल हो गए हैं। मेले में मुख्यत: गल रूपी मेघनाथ और उनकी पत्नी सुलोचना की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन कई मन्नतधारी भी यहां मन्नतें पूरी होने पर अपनी स्वेच्छानुसार भगवान के सामने मुर्गे, बकरे आदि बलि चढ़ाते हैं। वहीं कुछ श्रद्धालु नारियल, अगरबत्ती और कद्दू का चढ़ावा चढ़ाते हैं।
आदिवासियों की अनोखी परंपरा
गल की पूजा अर्चना के बाद मंदिर के भगत द्वारा क्षेत्र की खुशहाली और अला-बला को दूर करने के लिए गल पर चढ़ा जाता है। 50 फीट ऊंचे गल पर चढऩे के बाद भगत द्वारा गल के ऊपरी हिस्से पर बने लकड़ी के खंभे पर उलटा लेटा जाता है। जिसे नीचे खड़े लोगों द्वारा रस्सी के सहारे चारों तरफ घुमाया जाता है। इस प्रकार गल नीचे स्थित भगवान के चक्कर लगाती है। गल को पांच राउंडों में दो बार घुमाया जाता है। जिसमें गल पांच बार सीधे और पांच बार उल्टी दिशा में घूमती है। इसके पीछे मान्यता यह है कि बहारी जितनी भी अला-बला रहती है उसे दूर करने के लिए गल को पांच बार उल्टा घुमाया जाता है जबकि इसके विपरित क्षेत्र की खुशहाली और सुख समृद्धि के लिए गल को पांच बार सीधी दिशा में घुमाया जाता है। गल घुमने के बाद भगवा नीचे आ जाते हैं और फिर से पूजा-अर्चना का दौरा शुरू हो जाता है। पूजा-अर्चना का यह सिलसिला रात करीब 10 बजे तक चलता रहा। इस मेले में तकरीबन हजारों आदिवासी हिस्सा लेने के लिए दूरदराज से आए।
फाग मंडलियों ने बांधा समा
नगर में वर्षों से लगने वाले पारंपरिक फागुन मेले का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस दौरान ग्रामीण अंचलों से पहुंची फाग मंडलियों ने एक से बढ़कर एक फाग गाए। मंडलियों में गायकों ने ढोलक एवं झांझ के साथ पारंपरिक फाग गीत सुनाए। जिसमें श्याम मैं कैसे जाऊं घर को, श्याम ने रंग दी चुनरिया मैं बावरी हुई, रंग बरसे भीगे चुनर वाली जैसे गीतों ने समां बांध दिया। इस दौरान फाग गीतों पर लोग थिरके। आयोजन समिति के सदस्य लक्ष्मण बारंगे, मुन्ना कामड़ी, सुनील वानखेड़े आदि ने बताया कि मेले का शुभारंभ मेघनाथ के पूजन के साथ किया। इसके बाद झूला झूलने की स्पर्धा हुई। ग्रामीणों ने मेघनाथ का झूला झूलकर परंपराओं का निर्वहन किया।

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