करीब दो सौ साल पहले सस्ती मजदूरी के लिए अंग्रेज अपने अधीन देशों के मजदूरों को एक देश से दूसरे देश ले जाया करते थे, उसी दौरान भदोही के सुरियावां ब्लॉक के देवदासपुर निवासी बंधु गुप्ता को भी अंग्रेज मजदूरी के लिए वेस्टइंडीज ले गए। वहीं उन्होंने अपना परिवार बसा लिया। भदोही पहुंचे उनकी छठवीं पीढ़ी के विदेश रामप्रसाद गुप्ता बताते हैं कि इस पीढ़ी में वह अकेले हैं, वेस्टइंडीज के कुछ दस्तावेजों से उन्हें पता चला था कि उनका परिवार भारत से वहां पहुंचा था। उन दस्तावेजों में उनके गांव और जिले के नाम का जिक्र था, जिसके सहारे उन्होंने अपना पैतृक गांव खोजा। जब वह पहली बार भारत आये तो उन्हें यह सब खोजने में कई तरह की परेशानियों का सभी सामना करना पड़ा। कुछ स्थानीय लोगो ने इसमें उनकी मदद भी की थी, अपनी मातृभूमि पर आने के बाद वह काफी खुश है अब वह अपने एक संस्था के जरिये उनके पैतृक गांव में कुछ विकास कार्य भी करना चाह रहे है। इस परिवार ने अपने गांव के सटी एक गरीब बस्ती में एक हैंडपंप लगाने की तैयारी शुरू की है, जिसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी के साथ विधि विधान से पूजा की है।
विदेश गुप्ता ने बेल्जियम की रहने वाली कैरल से शादी की है उनकी दो बेटियां निर्मला और सुनीता वह भी उनके साथ भारत आई हुई हैं। विदेश में रहकर भी ये अभी भी भारतीय संस्कृति से पूरी तरह जुड़े हैं और अपनी दो बेटियों का नाम भी भारतीय रखा है जिसमे एक बेटी का नाम निर्मला और दूसरी का सुनीता है।
गांव के रहने वाले परमाशंकर मिश्रा बताते हैं कि उनके परिवार के लोगों के साथ विदेश के पूर्वज बंधु गुप्ता पार्टनरशिप में आटा चक्की चलाते थे, बंधु गुप्ता दो भाई थे। बंधु वेस्टइंडीज चले गए और उनके दूसरे भाई जो थे उनको बच्चे नहीं थे। बंधु गुप्ता के चले जाने के बाद उनके भाई की यहां मौत हो गई थी। ग्रामीण परमाशंकर मिश्रा यह भी कहते है उनकी जो जमीन थी वह उनके परिवार के लोगों के पास रह गई जिसको उनके परिजनों ने प्रयोग करना शुरू कर दिया था। बता दें कि इसके पहले भी विदेश यहां आ चुके हैं, इस बार जब वह आये तो उनके गांव के लोगों ने उनका फूल माला पहनकर स्वागत किया है और गांव के लोग इससे खुश भी है की इतने सालों के बाद भी किसी को अपनी मातृभूमि से इतना प्रेम है कि वह इतनी दूर बसने के बाद भी यहां यह जानने आये है कि उनके वंशज कहां के थे।
BY- MAHESH JAISWAL